रविवार, 10 जनवरी 2021

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*#श्रीदादू०अनुभव०वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग धनाश्री २७(गायन समय दिन ३ से ६)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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४४३ - भँगताल
निराकार तेरी आरती,
बलि जाउँ अनन्त भवन१ के राइ ॥टेक॥
सुर नर सब सेवा करैं, 
ब्रह्मा विष्णु महेश ।
देव तुम्हारा भेव न जानै, 
पार न पावै शेष ॥१॥
चँद सूर आरती करैं, 
नमो निरंजन देव ।
धरणि पवन आकाश अराधैं, 
सबै तुम्हारी सेव ॥२॥
सकल भवन सेवा करैं, 
मुनियर सिद्ध समाधि ।
दीन लीन ह्वै रहे सँत जन, 
अविगत के आराधि ॥३॥
जै जै जीवनि राम हमारी, 
भक्ति करैं ल्यौ लाइ ।
निराकार की आरती कीजै, 
दादू बलि बलि जाइ ॥४॥
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अनन्त लोकों१ के राजन् ! निरंजन देव ! आपकी आरती करते हुये मैं आपकी बलिहारी जाता हूं ।
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सुर, नरादि सभी आपकी सेवा करते हैं । ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वरादि देव आपके रहस्यमय स्वरूप का आदि अन्त नहीं जानते । शेष हजार मुखों से नित्य नूतन नाम - गान करने पर भी आपके नामों का पार नहीं पाते ।
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चन्द्र - सूर्य आपकी आरती करते हैं । पृथ्वी, वायु, आकाश, आपकी उपासना करते हैं तथा सभी महाभूत आपकी सेवा करते हैं । निरंजन देव ! आपको मैं नमस्कार करता हूं ।
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सँपूर्ण भुवन, मुनिवर, समाधि में स्थित सिद्ध भी आपकी सेवा करते हैं । आप मन, इन्द्रियों के अविषय ब्रह्म की आराधना द्वारा सँत - जन दीन भाव से आपके स्वरूप में लयलीन हो रहे हैं ।
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हे हमारे जीवन रूप राम ! हम आपकी "जय हो, जय हो” इस प्रकार जय ध्वनि करते हुये वृत्ति लगा कर आप की भक्ति करते हैं और आप निराकार की आरती करते हुये बारँबार आपकी बलिहारी जाते हैं ।
(क्रमशः)

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