शनिवार, 2 जनवरी 2021

*११. भगति संजीवनी कौ अंग ~ ५३/५६*

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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*११. भगति संजीवनी कौ अंग ~ ५३/५६*
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बेणी संगम४ भगति हरि, ब्रह्मचरिय जप ध्यांन ।
कहि जगजीवन देव मुनि, सकल साध रस पांन ॥५३॥
{४. बेणी संगम=गंगा, यमुना एवं सरस्वती=इन तीन नदियों(इडा, पिंगला, सुषुम्ना) का संगम}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि देह में ही संगम है इडा, पिंगला व सुषुम्ना का संगम जिसका रस पान दैवता मुनि व सभी साधुजन करते हैं ।
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हरि हरि तत्त्वं रांम नांम, परम पुरिष परमं पदं ।
कहि जगजीवन भगति मुक्ति, अम्रितं बचन बदं ॥५४॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हर का नाम ही हरि तत्व है जो रामनाम है और उस परमात्मा के चरणो में स्थान मिलना ही परम पद प्राप्त होना है भक्ति व मुक्ति के इच्छुक जन को अमृत सदृश मधुर वचन कहने चाहिए ।
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जस्य५ नादं सकल स्वादं, रांम भगति हृदये लहं ।
कहि जगजीवन तस्य नांमं, ज्ञान्यनं प्रगटं गहं५ ॥५५॥
(५-५. जिस साधक ने अनहद नाद का स्वाद चख लिया है, जिसका हृदय रामभक्ति में ओतप्रोत है उसका नाम ज्ञानियों में प्रसिद्ध हो जाता है ॥५५॥)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जिसने अनहद नाद का स्वाद चख लिया व जिसका ह्रदय भक्ति से ओतप्रोत है वह ज्ञानी है ।
परम पुरिष का पंथ मैं, ए कोई करै प्रवेस
कहि जगजीवन ताहि सब, सुर नर बंदै देस ॥५६॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि परमात्मा की आज्ञा में रहनेवाले या प्रवेश करने वाले जीव की दैव मनुष्य सब वन्दना करते हैं ।
(क्रमशः)

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