गुरुवार, 14 जनवरी 2021

(“सप्तमोल्लास” २८/३०)

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीसंतगुणसागरामृत०३* 🦚
https://www.facebook.com/DADUVANI
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
.
(“सप्तमोल्लास” २८/३०)
.
*पूर्व अवतारों के रूप दिखाये*
*केऊ रही वृक्षनि कै लागी,*
*केऊ सूके स्वरूप बड़ भागी ।* 
*नीचै सीस जु ऊंचे पांऊ,*
*सीत ऊष्ण सहे करि भाऊ ॥२८॥* 
कोई तो वृक्ष के लटक रहे थे, कुछ शुष्क स्वरूप थे । कुछ नीचे शिर ऊपर पैर करके तप के भाव से शीत ऊष्ण सहन करते हों ऐसे ज्ञात हो रहे थे ॥२८॥ 
.
*दीसै पंच आगि बहु दाधी,*
*दीसै बहुत पर्वतौं बांधी ।* 
*केते रूप जु नीचे कांकर,*
*वाजै पवन रु बोले खांखर ॥२९॥* 
कुछ रूप पंचाग्नि तपते हुये ज्ञात हो रहे थे, बहुत से पर्वतो में बंधे हुये थे, उनमे वायु प्रवेश करने से पोल के कारण सूखे स्वरूप खणखण अवाज की तरह बोल रहे थे ॥२९॥ 
.
*वरणूं और कहां लगि केती,*
*कष्ट कीयों बहु धारी तेती ।* 
*रूपों का कोई अंत न आवे,*
*स्वामी पार कहां लों पावै ॥३०॥* 
कहां तक कहा जाय, जितने रूप धारण किये थे उन सब ही रूपों ने बहुत कष्ट सहे थे । उन रूपों का ही अंत नहीं आ रहा था तब उनको दिव्य दृष्टि देकर दिखाने वाले स्वामी जी का पार कैसे आ सकता है ॥३०॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें