गुरुवार, 14 जनवरी 2021

काल का अंग २५ - ४७/५१

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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(#श्रीदादूवाणी ~ काल का अंग २५ - ४७/५१)
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*जे उपज्या सो विनश है, जे दीसै सो जाइ ।*
*दादू निर्गुण राम जप, निश्‍चल चित्त लगाइ ॥४७॥*
जो उत्पन्न होता है वह नष्ट अवश्य होता है । जो दिखता है वह भी जायेगा । अतः निश्चल चित्त के द्वारा उस निश्चल रहने वाले परमात्मा को भजो । भागवत में- यह जगत् भ्रम मात्र हैं ऐसा जानो । क्योंकि मन का विलास मात्र है । स्वप्न की तरह दृष्ट नष्ट स्वभाव वाला है तथा अलातचक्र की तरह चंचल है । एक विज्ञान ही माया के द्वारा नानारूप से प्रतीत हो रहा है ।
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*जे उपज्या सो विनश है, कोई थिर न रहाइ ।*
*दादू बारी आपणी, जे दीसै सो जाइ ॥४८॥*
उत्पन्न होने वाले पदार्थों का नाश निश्चित है । इस संसार में कोई भी स्थिर नहीं रहता । समय अपने पर सब चले जाते हैं । 
महाभारत में- जितना भी संचय है उसका नाश होगा जो ऊपर उठता है वह नीचे गिरता है । संयोग एक दिन वियोग में परिणत हो जाता है और जीवन का अन्त मृत्यु में है ।
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*दादू सब जग मर मर जात है, अमर उपावणहार ।*
*रहता रमता राम है, बहता सब संसार ॥४९॥*
सृष्टि बनाने वाले परमात्मा के सिवाय इस संसार में कोई भी स्थिर नहीं रहता । जो राम सब में रमण करने वाला है, वह ही नित्य है । संसार तो बहने वाला है । मर-मर का दूसरे लोकों में चला जाता है । 
गीता में कहा है कि- जो सारे विश्व में व्याप्त है वही अविनाशी तत्त्व है । उस अव्यय का कोई नाश नहीं कर सकता ।
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*॥ सजीवन ॥*
*दादू कोई थिर नहीं, यहु सब आवै जाइ ।*
*अमर पुरुष आपै रहै, कै साधु ल्यौ लाइ ॥५०॥*
यहां पर कोई भी स्थिर रहने वाला नहीं है । आते और चले जाते हैं । किन्तु एक परमात्मा ही स्थिर है । या उसके दास उसको भज कर मुक्त हो जाते हैं । लिखा है कि-
वह राजा दशरथ कहां चला गया । जिसका स्वर्गवासी इन्द्र तो मित्र था । जिसने समुद्रों की मर्यादा बनाई, वह सगर राजा कहां चला गया । जो भुजा के मन्थन से पैदा होने वाला पृथुराज चला गया । सुर्यपुत्र मनु भी नहीं दिखता । मालुम होता है कि काल सब को जगा कर निगल गया ।
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*॥ काल चितावणी ॥*
*यहु जग जाता देखकर, दादू करी पुकार ।*
*घड़ी महूरत चालनां, राखै सिरजनहार ॥५१॥*
काल के मुख में शीघ्र गति से जाते हुए जनसमुदाय को देख कर सन्त पुकार-पुकार कर उच्च स्वर में कह रहे हैं कि घड़ी मूहूर्त में सब को ही आगे पीछे जाना है । अतः सभी को भगवान् का भजन करना चाहिये । वह ही सब को काल से बचा सकता है । 
भागवत में कहा है कि- स्त्री पुत्र धन घर कुटम्ब में आसक्त प्राणियों से दुष्प्राप्य तथा गुणों के संग से रहित ज्ञानस्वरूप भगवान् को मेरा नमस्कार हो । जिसका मुक्त पुरुष अपने हृदय में ध्यान करते हैं । उसी का हमें भी ध्यान करना चाहिये जिससे काल से मुक्त हो जाये ।
(क्रमशः)

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