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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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(#श्रीदादूवाणी ~ काल का अंग २५ - १/३)
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*दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरुदेवतः ।*
*वन्दनं सर्व साधवा, प्रणामं पारंगतः ॥१॥*
*काल न सूझै कंध पर, मन चितवै बहु आश ।*
*दादू जीव जाणै नहीं, कठिन काल की पाश ॥२॥*
यह जीवात्मा नाना तृष्णाओं से बंधा हुआ विषय भोगों को ही दिन रात सोचता रहता है । अपने स्कन्ध पर स्थित मृत्यु को भी नहीं देखता । भर्तृहरि ने लिखा है कि- “इस जीव के सभी मनोरथ मन में ही जीर्ण हो गये । यौवन बुढ़ापे में परिणत हो गया है । खेद है कि ग्राहकों के बिना गुण भी शरीर के अन्दर ही निष्फल हो गये । किसी को भी क्षमा न करने वाला काल ही सहसा आ धमका । अब क्या करना चाहिये । हां, अब समझ में आ गया कि शिव चरणों को छोड़ कर और कोई गति नहीं है ।
यह काल निर्दयी कठोर क्रूर कर्कश स्वभाव वाला है तथा जीवन दान में बड़ा ही कृपण है । अतः एव अधम है । ऐसा आज तक देखने में नहीं आया कि काल ने जिसको न निगला हो ।”
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*दादू काल हमारे कंध चढ, सदा बजावै तूर ।*
*कालहरण कर्त्ता पुरुष, क्यों न सँभाले शूर ॥३॥*
यह काल मनुष्यों के कंधे पर बैठ कर सबको चेतावनी देते हुए कह रहा है कि मैं आ गया हूँ । अतः काल का भी जो काल कर्ता पुरुष है उसको क्यों नहीं याद करता । कठ में लिखा है कि- जिसके भय से अग्नि तपता है, सूर्य तपता है । इन्द्र और वायु तथा मृत्यु भी जिसके भय से दौडती रहती है । उसको याद करो ।
(क्रमशः)

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