शनिवार, 16 जनवरी 2021

काल का अंग २५ - ५६/५९


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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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(#श्रीदादूवाणी ~ काल का अंग २५ - ५६/५९)

*॥ काल चेतावणी ॥*
*जे दिन जाइ सो बहुरि न आवै, आयु घटै तन छीजै ।*
*अंतकाल दिन आइ पहुंता, दादू ढील न कीजै ॥५६॥*
गये हुए दिन वापस नहीं लौटते । आयु भी प्रतिदिन घटती जा रही है । अन्तकाल भी नजदीक है । अतः व्यर्थ में ही क्यों विलम्ब कर रहे हों, शीघ्र हरि को भज कर मुक्त हो जावो ।
महाभारत में- गये हुए दिन मास पक्ष रात्रि यह जिन्दगी में वापस नहीं आते । फिर भी जीव सावधान नहीं होता और भी लिखा है कि-
हमने चिरकाल तक स्त्री का ध्यान किया । स्त्री के अधरामृत का पान किया लेकिन भगवान् के चरणोदक का पान कभी नहीं किया । स्त्री के रुष्ट हो जाने पर कितनी बार उसके आगे विनती करी लेकिन राम के लिये कभी विनती नहीं करी और जन्म व्यर्थ में ही खो दिया ।
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*दादू अवसर चल गया, बरियां गई बिहाइ ।*
*कर छिटके कहँ पाइये, जन्म अमोलक जाइ ॥५७॥*
समय प्रतिक्षण चला जा रहा है । भजन का शुभ अवसर भी बीता जा रहा है । अमौलिक यह शरीर भी व्यर्थ ही जा रहा है । अतः विचार कर देखो यदि भजन के बिना ही यह शरीर नष्ट हो जायेगा तो फिर भजन कब करोगे ।
श्रुति भी कहती है कि- इस जन्म में यदि आत्मा को जान लिया तब तो ठीक है अन्यथा शरीर के नष्ट हो जाने से बड़ा अनर्थ हो जायेगा ।
अन्यत्र लिखा है कि- जब पृथ्वी, जल, अग्नि, पवन, आकाश आदि पदार्थों वाला यह जगत् नष्ट हो रहा है । ब्रह्मा से लेकर सारे देवता भी नष्ट हो रहे हैं । इस प्रकार सब का नाश देखते हुए भी इस मोहमयी माया को हम नहीं त्यागते जो जन्म की देने वाली है ।
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*दादू गाफिल ह्वै रह्या, गहिला हुवा गँवार ।*
*सो दिन चित्त न आवई, सोवै पांव पसार ॥५८॥*
हे मूर्ख प्राणिन् ! किस लिये उन्मत्त की तरह फिर रहा है । क्या तुझे वे दिन याद नहीं आ रहे हैं । जिन दिनों में तू हाथ पैर पसार का सोयेगा ।
सुभाषित में लिखा है कि- जो सुख बीत गया उससे हमारा कोई सम्बन्ध नहीं है । आगे होने वाले सुख से भी कोई सम्बन्ध नहीं है । क्योंकि वह है ही नहीं । वर्तमान सुख भी क्षणभंगुर है । अतः किस सुख के लिये लालायित हो रहा है । अतः सबको छोड़ कर हरि को भजो । जिससे कल्याण हो जावे ।
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दादू काल हमारा कर गहै, दिन दिन खैंचत जाइ ।
अजहुं जीव जागै नहीं, सोवत गई बिहाइ ॥५९॥
आयु के क्षीण होने से हम प्रतिदिन काल के समीप पहुंच रहे हैं । मानो काल हाथ पकड़ का अपनी तरफ खींच रहा हो । फिर भी यह जीव अपनी आयु को सोते हुए ही खो देता है और कुछ भी विचार नहीं करता । लिखा है कि-
जिस दिन यह जीव गर्भ में प्रवेश करता है उसी दिन से इसके प्राण प्रयास शुरू कर देते हैं और धीरे धीरे मृत्यु के पास पहुंच जाता है । मित्र स्त्री पुत्र परिवार तथा भोग तथा भोग के साधन भूत संपत्ति आदि एक दिन ऐसा आयेगा कि उस दिन सब नष्ट हो जायेंगे । उस दिन न तुम रहोगे, न हम रहेंगे, न परिवार आदि ही रहेगा ।
(क्रमशः)

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