शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

*हरि के समर्पित राजर्षि*

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
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*दादू स्वर्ग पयाल में, साचा लेवे नाम ।*
*सकल लोक सिर देखिये, प्रकट सब ही ठाम ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,* 
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान* 
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
*शतधन्वा वैवस्व नहुष, उतंग भूरिदबल ।*
*यदु ययाति शरभंग, पूरु दियो योवन बल ॥*
*गय दिलीप अम्बरीष, मोरध्वज शिवि र पंडु ध्रुव ।*
*चन्द्रहास अरु रंति, मानधाता चकवै भुव ॥*
*संजय समीक निमि भरद्वाज, वाल्मीकि चित्रकेतु दक्ष ।*
*तन मन धन अर्पि हरि मिले, जन राघव येते राज रिष ॥५५॥*
अपने तन, मन और धन को हरि के समर्पण करके इतने राजर्षि हरि को प्राप्त हुये हैं- *{चतुर्थ अंश}*
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*३२.शतधन्वा-* राजर्षि शतधन्वा की कथा स्यमन्तक मणि के प्रसंग में श्री मद्भागवत में विस्तार से है । इनको श्रीकृष्ण भगवान् ने मारा था और मुक्ति प्रदान की थी ।
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*३३.वैवस्व(वैवस्वत मनु)-* राजर्षि वैवस्वत मनु विवस्वान्(सूर्य) के पुत्र और इक्ष्वाकु के पिता हैं । सूर्य ने इनको योग प्रदान किया था और इनने अपने पुत्र इक्ष्वाकु को दिया था ।
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*३४.नहुष-* राजर्षि नहुष आयु के द्वारा स्वर्भानुकुमारी के गर्भ से उत्पन्न पांच पुत्रों में से एक हैं । इनने इन्द्र पद प्राप्त किया था किन्तु ऋषियों को पालकी के वाहन बनाने से ऋषि शाप से अजगर योनि में पड़ गये थे । अजगर योनि में भीम को पकड़ा था, फिर युधिष्ठिर के साथ प्रश्नोत्तर होने से प्रसन्न होकर इनने भीम को छोड़ा था तथा अजगर योनि से छूटकर पुनः स्वर्ग में गये थे ।
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*३५.उतंग-* उतंग नाम के तीन ऋषियों का परिचय मिलता है-
(१)आयोद- ध्यौम्य ऋषि के तीसरे शिष्य, इनकी गुरु पत्नी के लिये राजा पौष्य के यहां से कुण्डल लाने की कथा महाभारत आदि-पर्व में विस्तार से है । 
(२)दूसरे गौतम ऋषि के शिष्य, द्वारिका जाते समय श्रीकृष्ण ने इनको विराट रूप दिखाया था । 
(३)तीसरे दंडक वनवासी मतंग ऋषि के शिष्य । मतंग जब परम धाम को जाने लगे तब इनको आज्ञा दी थी- तुम यहां ही रहकर भजन करो । यहां ही रामजी आकर तुम्हें दर्शन देंगे, वैसा ही हुआ ।
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*३६.भूरिदबल-* (१)महान बल के दाता राजर्षि भूरिबदल जी वा 
(२)इक्ष्वाकु-वंशी राजा परीक्षित द्वारा मंडूकराज की कन्या सुशोभना के गर्भ से उत्पन्न बहुत दान देने वाले बल जी का भी इससे ग्रहण हो सकता है ।
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*३७.यदु-* राजर्षि यदु जी ययाति के द्वारा देवयानी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे । इनको दत्तात्रेय जी ने कृपा करके दर्शन तथा उपदेश दिया था । सत्संग से राजा यदु में विवेक उत्पन्न हो गया था फिर भगवद् भजन करके परम धाम को प्राप्त हुए थे । आप के ही वंश में भगवान् श्रीकृष्ण प्रकट हुए थे । 
*३८.ययाति-* राजर्षि ययाति नहुष के पुत्र थे । वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा के द्वारा कूप में गिराई गई शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी को कूप से निकाला था । देवयानी का विवाह ययाति के साथ ही हुआ था । ययाति शुक्राचार्य के शाप से वृद्ध हो गये थे । अपने पुत्र पुरु की सहायता से युवावस्था प्राप्त की थी । अन्त में पुरु को राज्य देकर तथा वन में जाकर भगवद् भजन द्वारा परम धाम को प्राप्त हुए ।
*३९. शरभंग-* शरभंग प्राचीन ऋषि हैं । उत्तराखंड में आपका विख्यात आश्रम था । दक्षिण में दंडक वन के आस पास भी इनका आश्रम था । आप सत युग से ही रामजी के दर्शन के लिये तप कर रहे थे । इन्द्र ने बहुत बार कहा था-“आप ब्रह्म लोक में पधारें किन्तु रामजी के दर्शन किये बिना आप नहीं गये थे । श्रीरामजी ने इनके आश्रम पर जाकर इनको दर्शन दिया था ।
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*४०.पुरु-* राजर्षि पुरु ययाति के द्वारा शर्मिष्ठा के गर्भ से उत्पन्न हुए थे । पौरव वंश आप से ही चला है । आपने अपने पिता ययाति को अपनी युवावस्था और बल देकर उनकी वृद्धावस्था ग्रहण की थी ।
(क्रमशः)

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