🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
*गर्वै बहुत विनाश है, गर्वै बहुत विकार ।*
*दादू गर्व न कीजिये, सन्मुख सिरजनहार ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ पद्यांश. ४५)*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---------वैराग्य
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एक त्यागी साधु ने सन्तवर दादूजी के शिष्य संत रज्जब जी के पास जाकर त्याग के अभिमान के सहित कहा - हम जूता नहीं पहनते और पैसा भी नहीं ग्रहण करते हैं, इससे हम श्रेष्ठ हैं । संत रज्जब जी ने यह सोचकर कि इसे त्याग का अभिमान है, अभिमान किसी भी प्रकार का हो, भगगवत् प्राप्ति मे विध्न ही होता है । कहा -
'पशु भी नहिं गहे, नहिं पहिने पैजार ।
रज्जब ऐसे त्याग से, मिले न सिरजनहार ॥'
यह सुनकर उसका अभिमान नष्ट हो गया ।
किये त्याग अभिमान के, होता नहीं सम्मान ।
रज्जब सन्मुख जात ही, नष्ट भया अभिमान ॥१९७॥

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