रविवार, 17 जनवरी 2021

(“सप्तमोल्लास” ३७/३९)


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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“सप्तमोल्लास” ३७/३९)
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*ॠषि सारंग तुम्हारा कछू न लीया,*
*मिथ्या दुख काहे कूं दीया ।*
*नृप होई प्रति पाल जु करिये,*
*ऐसी करणी नरकहिं परिये ॥३७॥*
तब ॠषि ने राजा को कहा इन मृगों ने तुम्हारा क्या छीन लिया है । इनको मारने के लिये आप क्यों इनके पीछे लगे हैं । राजा का काम तो रक्षा करना है, जो राजा होकर निरपराध प्राणियों को मारता है तब तो निश्‍चय नरक में ही जाता है ॥३७॥  
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*राजा कहे जाई क्यूं नांही,*
*देऊं सज्या अब तोरे तांई ।*
*खूब आखेट कीया ख्वारू,*
*मारूं तोहि, कौन रखवारू ॥३८॥*
ॠषि का उक्त वचन सुनकर राजा ने कहा- यहां से चले क्यूं नहीं जाते, नहीं जाओगे तो तुमको भी दंड दूंगा । मेरे सामने बहुत सी शिकार आई थी किन्तु तुमने उसमें खराबी बाधा खडी कर दी है वे सब मृग भाग गये हैं अब मैं तुम्हे ही मारूंगा देखूंगा तुम्हारा कौन रक्षक है ॥३८॥
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*हमारो बन है हमारो राज,*
*मुंडिये नाहिं तुम्हारौ काज ।*
*कहे ॠषि स्वर-सुनि रे राऊ,*
*इन मंहि नहीं तुम्हारो काऊ ॥३९॥*
राजा ने कहा- हमारा बन है हमारा राज्य है अरे मुंडिये साधु फिर भी हमें रोकने का तेरा यहां क्या अधिकार है । तब ॠषि ने कहा राजन सुनो, इनमें तो तुम्हारा कोइ भी नहीं है ॥३९॥
(क्रमशः)

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