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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*११. भगति संजीवनी कौ अंग ~ ९३/९५*
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कबहुँ कसौटी करी नहिं, मुवौ न मन को मांन६ ।
कहि जगजीवन रांम भगति मंहि, थकी न उपजत आंन ॥९३॥
(६. मुवौ न मन को मांन=मन के अभिमान का नाश)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हमने कभी परमात्मा को जाना ही नहीं अतः हमारे मन का अहम गया ही नहीं । संत कहते हैं कि राम भक्ति पूर्ण समर्पणभाव से करने से ही जीवन की भागमभाग थकती है या मिटती है ।
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नारद७ प्रगट प्रसन्न है, तत्त बतावै व्यास७ ।
भगति जगाई जलन गमाई, कहि जगजीवनदास ॥९४॥
(७-७. नारदभक्ति सूत्र एवं व्यासकृत भागवतपुराण की ओर संकेत है, जिनमें भक्तिशास्त्र का सांगोपांग वर्णन है)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि नारद जी के भक्ति सूत्र व व्यास महाराज के भक्ति शास्त्र में स्पष्ट कहा गया है कि भक्ति से ही संसारिक ताप मिटाये जा सकते हैं ।
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ए हरि के परसिद्ध गुण, सब मंहि अविगत रांम ।
कहि जगजीवन जांण जस, सुखी भये सब ठांम ॥९५॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि परमात्मा सर्व व्यापक हैं, यह जग जाहिर है । जो इस यश को जान जाता है वह सर्वत्र सुखी रहता है ।
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इति भगति संजीवनी कौ अंग संपूर्ण ॥१२॥
(क्रमशः)

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