मंगलवार, 12 जनवरी 2021

*राघो रक्षपाल नवों नाथ रट रात दिन*

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*कछु न कहावे आप को, सांई को सेवे ।*
*दादू दूजा छाड़ि सब, नाम निज लेवे ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,* 
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान* 
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*नवनाथ* 
*मूल मनहर -*
*ॐ कार आदि नाथ उदै नाथ उतपति,*
*उमापति शंभू सत्य तन मन जित है ।*
*संतनाथ विरंचि संतोष नाथ विष्णुजी है,*
*जगन्नाथ गणपति गिरा को दाता नित्य है ॥*
*अचल अचंभनाथ मगन मत्स्येन्द्रनाथ,*
*गोरख अनंत-ज्ञान मूरति सु वित्त है ।*
*राघो रक्षपाल नवों नाथ रट रात दिन,*
*जिनको अजीत अविनाशी मध्य चित्त है ॥५७॥*
१. ओंकारनाथ आदिनाथ हैं । २. जिन से सृष्टि होती है वे ईश्वर उदय नाथ हैं । ३. तन मन को जीतने वाले उमापति शंभू सत्यनाथ हैं । 
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४. ब्रह्मा-संत नाथ हैं । ५. विष्णु-संतोष नाथ हैं । ६. नित्य श्रेष्ठ बुद्धिरूप वाणी के दाता गणपति जगन्नाथ हैं । 
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७. स्वस्वरूप में अचल रहने वाले अचंभ नाथ हैं । ८. योगद्वारा प्रभु में निमग्न रहने वाले मत्स्येन्द्रनाथ हैं । ९. अनन्त ज्ञान की मूर्ति, योगरूप श्रेष्ठ धन वाले गोरक्षनाथ हैं । ये नवनाथ हैं । 
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राघवदासजी कहते हैं- “जिनका मन विषयों के वश में नहीं होकर सदा अविनाशी परमात्मा के स्वरूप में ही स्थित रहता है, उन नवों नाथों को ही रक्षक समझकर उनका नाम रात-दिन रटना चाहिये वा मैं रटता हूँ ।”
(क्रमशः)

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