🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
*ऊपरि आलम सब करैं, साधू जन घट माँहि ।*
*दादू एता अन्तरा, ताथैं बनती नांहि ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ सांच का अंग)*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---------स्वाध्याय
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एक राजा ने किसी कार्य के लिये दो नौकर विदेश भेजे। कुछ समय पश्चात किसी अन्य कार्य के लिये राजा ने दोनों को पत्र लिखे और लिखा कि पत्र का आदर करना ऐसे ही नहीं पटक देना । पत्र दोनों के पास पहुँचे, एक ने तो पत्र में लिखा कार्य को भलीभाँति पढ करके पत्र को फेंक दिया । और दूसरे ने पत्र को चौकी पर रखकर पूजन करने लगा । पत्र में लिखे कार्य को करने वाले पर राजा प्रसन्न हुआ और उच्च पद भी दिया । पत्र पूजने वाले पर नाराज हुआ और उसे निकाल दिया । इसी प्रकार पाठ पढने या पुस्तक पूजने से ही कार्य सिद्ध न होकर अन्त में लाज ही लगती है ।
पाठ तुल्य यदि नहिं करे, तो न सिद्ध हो काज ।
भूप पत्र पूजत लगी, अनत भृत्य को लाज ॥६८॥

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