मंगलवार, 12 जनवरी 2021

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
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*दादू बुरा न बांछै जीव का, सदा सजीवन सोइ ।*
*परलै विषय विकार सब, भाव भक्ति रत होइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ दया निर्वैरता का अंग)*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---------गुरु ग्राहकता 
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रसिक मुरारी जी के यहाँ साधु जीम रहे थे, एक साधु ने अपने दण्ड का परोसा मांगा । मुरारी जी के शिष्यों ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया । तब उसने जूठी पत्तल मुरारीजी को मारी । मुरारीजी ने यह कह कर "मेरा अहो भाग्य है, जो संत की उच्छिष्ट मेरे तन पर पड़ी ।" फिर उस साधु को दण्डवत करके दण्ड का परोसा(भेंट) दे दिया ।
गुण ही लेते सन्तजन, अवगुण लेते नांहि ।
रसिक मुरारी उच्छिष्ट से, मुदित भये मन माँहि ॥३६॥

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