🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*स्वर्ग नरक सुख दुख तजे, जीवन मरण नशाइ ।*
*दादू लोभी राम का, को आवै को जाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ मध्य का अंग)*
=================
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---------अतिथि
############################
इन्द्रादिक सुप्रसन्न हो, दिये अतिथि को अन्न ।
मुदगल हेतु विमान सुर, भेजा होय प्रसन्न ॥२६॥
द्वापर युग में कुरूक्षेत्र निवासी मुदगल मुनि शिलोञछवृति से जीवन निर्वाह करते थे । ३४ सेर अन्न से अधिक अन्न इकठ्ठा नहीं करते थे । महीने में दो बार - अमावस्या और पूर्णिमा के दिन अतिथियों को जिमाने का बाद ही सपरिवार भोजन करते थे ।
.
मुदगल की कीर्ति सुनकर दुर्वासाजी के मन में उनकी परीक्षा करने की बात उठी । ये पन्द्रहवें दिन मुदगल के अतिथि के रूप में पहुँच जायं और सब अन्न खा जायें । मुदगल सपरिवार भूखे रहें । इसी प्रकार लगातार छ: बार दुर्वासा गये ।
.
मुदगल सपरिवार तीन महीनों से भूखों मर रहे हैं किन्तु किसी के कभी मन में कोई विकार नहीं उठा । सब शांत और प्रसन्न हैं । यह देखकर दुर्वासा प्रसन्न हो गये । उसी समय देवदूत विमान लेकर मुदगल को सशरीर स्वर्ग में ले जाने को आया । मुदगल ने स्वर्ग के गुण दोष पूछे । ज्ञात होने पर कह - "जिसमें ईष्यादि दोष है उस स्वर्ग में मैं नही जाऊँगा" यह कहकर देवदूत को लौटा दिया । कहा भी है -
दोहा -
आदर अग्नि रु अशन विधि, पितर पाद के धोत ।
अतिथिन को आसन दिये, सुरपति प्रसन्न होत ॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें