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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“सप्तमोल्लास” १६/१८)
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*नख सिख मंगल उपज्यो चारू,*
*ले चरणों में आरती उतारू ।*
*दादू दादू बोलै राऊ,*
*दादू दादू सब ही गाऊ ॥१६॥*
सब के नख से शिखा तक शरीर में मंगलाचार हो रहा था । सब चरणों में वृति लगाकर आरती उतार रहे थे । उक्त समय राजा दादू-दादू बोल रहे थे, और सभी लोग दादू-दादू का ही गान कर रहे थे ॥
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*दादू दादू आठ से पुत्रा,*
*दादू दादू राणी उचत्रा ।*
*दादू दादू बाजे वीणाँ,*
*दादू दादू ब्रगुथु झीणां ॥१७॥*
राजा के आठ सौ पुत्र और सभी राणियां दादू दादू ही उच्चारण कर रही थी, वीणा आदि तार के बाजे भी दादू-दादू ही बोल रहे थे ॥१७॥
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*दादू दादू ताल पखावज,*
*दादू दादू सबै सुनावज ।*
*दादू दादू बाजे भेरू,*
*सुर ऊँचे अति लागी टैरू ॥१८॥*
ताल पखावज, भेरी आदि बाजों से भी दादू-दादू ध्वनि ही निकल रही थी । सभी नर-नारी ऊंचे स्वर से दादू-दादू ही बोल रहे थे ॥१८॥
(क्रमशः)

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