बुधवार, 13 जनवरी 2021

= *स्वाँग साँच निर्णय का अंग १३३ (१/४)* =

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*दादू यह परिख सराफी ऊपली,*
*भीतर की यहु नाहिं ।*
*अन्तर की जानैं नहीं, तातैं खोटा खाहिं ॥*
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*श्री रज्जबवाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*स्वाँग साँच निर्णय का अंग १३३* 
इस अंग में भेष और सत्य साधना संबंधी विचार कर रहे हैं ~
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दत दशा लीयूं१ फिरै, देखि दिगम्बर कोड़ि२ । 
पर सो सकलाई३ कौन में, अवलोको इहिं वोड़ि४ ॥१॥
भेष के द्वारा तो दत्तात्रेय की - सी अवस्था लिये१ हुवे कोटिन२ दिगम्बर फिरते हैं परन्तु वह दत्तात्रेय की शक्ति३ किसमें है, इस शक्ति की ओर४ भी देखो तो ज्ञात होता है कि वैसी शक्ति अन्य में नहीं । 
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ज्यों गोरख गोदावरी, मनिख१ किये पाषाण । 
त्यौं रज्जब औरों करैं, सरभरि२ सोई साण३ ॥२॥
गोरक्ष नाथ का - सा भेष तो बहुत बना लेते हैं किंतु जैसे गोरक्ष नाथ ने गोदावरी पर मनुष्यों१ को पत्थर बनाया था वैसे कोई और करे तो वह उनके समान२ जाना३ जा सकता है मनुष्यों को पत्थर बनाने की कथा - छप्पया ग्रंथ के आज्ञा भंग के अंग की टीका में देखो । 
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भरम१ भेष धरि भरथरी, शूली हरी न होय । 
तो रज्जब माने सु क्यों, क्यों पति पावै कोय ॥३॥
भरथरी का-सा भेष बनाकर भ्रमण१ करता है किंतु भर्तृहरि के लिये शूली हरि हुई थी, वैसे ही इसके लिये तो नहीं होती, तब भेष मात्र से कैसे कोई भर्तृहरि का - सा भेष बना कर प्रभु को भी कैसे प्राप्त कर सकता है ? शूली हरी होने की कथा छप्पया ग्रंथ में भजन प्रताप अंग के पंचम छप्पये की टीका में देखो । 
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मंदिर फिरै न मूरति पावै१, गऊ न जीवे जान । 
तो नामदेव सम होय क्यों, पद साखी सु बखान ॥४॥
जागरण में नाचते समय कमर से खुलकर जूते सभा में गिरने से अपमानित नामदेव मंदिर के पिछे जाकर बैठा तब मंदिर का मुख नामदेव की ओर फिरा । नामदेव ने हाथ से मूर्ति को दूध पिलाया१ । दुर्जनों के द्वारा मारकर डाली हुई गाय नामदेव के संकिर्तन से जीवित हुई । जिससे उक्त कार्य तो हो सकते नहीं तब निश्चय जान केवल पद और साखी कहने मात्र से कोई नामदेव के समान कैसे हो सकता है ? नामदेव की उक्त कथायें भक्तमाल में विस्तार से हैं, वहाँ देखें । 
(क्रमशः)

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