शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

(“अष्टमोल्लास” ४६/४८)

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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“अष्टमोल्लास” ४६/४८)
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*निसि दिन कीजै गुरु दीदारू,*
*भाव भक्ति मन रहे करारू ।*
*पावन भयो तुम्हारो बंसू,*
*ज्ञान दास रहे माणिक दासू ॥४६॥*
यहां रहने से रातदिन गुरु देव जी का दर्शन से मन में दृढ भाव भक्ति रख कर करते रहेंगे, राजा की प्रार्थना सुनकर दादूजी महाराज ने कहा- तुम्हारा वंश तो पवित्र हो गया है । और तुम्हारे देश में ज्ञान दास और माणिक दास रहेंगे ॥४६॥
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*और संत बहु बाग मंझारी,*
*परमानंदी हरि अधिकारी ।*
*कृपा आप करी भगवंतू,*
*तहां विराजै हरि के संतू ॥४७॥*
और भी बहुत से संत जो हरि दर्शन के अधिकारी है तथा परमानंद का उपयोग करते हैं तुम्हारे बाग में है । जिस पर स्वयं भगवान कृपा करते हैं, उसी के यहां संत विराजते हैं, संत कृपा से प्रभु मिलते हैं और प्रभु कृपा से संत मिलते हैं ॥४७॥
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*केदार देश भारत से बाहर*
*पावन भये सकल तुम भवनूं,*
*हरिदास निज तहां कियो गवनू ।*
*हरि की आज्ञा इहै जु हमने,*
*उत्कट हैं जांहि भरथ खंड में ॥४८॥*
तुम्हारे सब भवन तो पवित्र हो गये, क्योंकि यहां संतों के चरण पड़ते ही रहते है । हमारे को तो हरि की यही दृढ आज्ञा है कि भारत वर्ष में जाओ और जन कल्याण करो यहां भारत से अलग केदार देश बता दिया ॥४८॥
(क्रमशः)

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