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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी ~ उपजणि का अंग २८ - ४/७)*
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*॥ उपजण ॥*
*दादू अनुभव उपजी गुणमयी, गुण ही पै ले जाइ ।*
*गुण ही सौं गहि बंधिया, छूटै कौन उपाइ ॥४॥*
जब साधक के अन्तःकरण में त्रिगुणात्मक ज्ञान पैदा होता है तो उस अवस्था में साधक का मन विषयों में चंचल होकर दौडता रहता है और गुणों से बंध जाता है । अतः त्रिगुणात्मक ज्ञान बन्धन का ही हेतु हैं । निर्गुण ज्ञान ही मुक्ति कराने वाला है ।
गीता में कहा है- ‘पृथ्वी आकाश देवलोकों में ऐसा कोई प्राणी नहीं जो इन तीनों गुणों से मुक्त हो ।’
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*द्वै पख उपजी परिहरै, निर्पख अनुभव सार ।*
*एक राम दूजा नहीं, दादू लेहु विचार ॥५॥*
जिस ज्ञान से मतमतान्तरों का विवाद हो और विक्षेप को पैदा करे वह ज्ञान हेय है । क्योंकि उससे विषाद होता है । वास्तविक ज्ञान वही है जिस से राम की प्राप्ति हो । अतः निष्पक्ष सन्तों के वचनों द्वारा ज्ञान प्राप्त करके राम का भजन करो ।
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*दादू काया ब्यावर गुणमयी, मनमुख उपजै ज्ञान ।*
*चौरासी लख जीव को, इस माया का ध्यान ॥६॥*
यह शरीर माया से पैदा होने के कारण मायिक ही है । इस शरीर में प्रायः सभी प्राणियों को सांसारिक विषयक ही ज्ञान पैदा होता है । ब्रह्मविषयक ज्ञान नहीं । अतः सांसारिक पुरुष माया का ही चिन्तन करते रहते हैं । क्योंकि वह सब को पैदा करने वाली माया है । परमात्मा का कोई चिन्तन नहीं करता ।
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*आत्म उपज आकाश की, सुनि धरती की बाट ।*
*दादू मारग गैब का, कोई लखै न घाट ॥७॥*
एक मात्र ब्रह्मप्राप्ति का मार्ग ब्रह्मज्ञान ही है । श्वेताश्व. में लिखा है कि- उसी ब्रह्म को जान कर ही मृत्यु को पार कर सकता है और कोई दूसरा रास्ता ही नहीं है । यह रास्ता गुप्त और दुर्लभ है । द्वैतमार्गानुयायियों द्वारा दूषित है । इसलिये संसारी प्राणी द्वैतवादियों की बातें सुन-सुन कर अद्वैत पथ का कभी विचार भी नहीं करते तो फिर कैसे ब्रह्म की प्राप्ति हो सकती हैं ।
विवेकचूडामणि में- हे शिष्य ! भव सागर को पार कराने वाला एक उपाय है जिसके द्वारा भव सागर को पार करके परमानन्द को प्राप्त हो जायगा । “तत्त्वमसि” आदि वेदान्त वाक्यों के विचार से उत्तम ज्ञान प्राप्त होता है जिससे सदा के लिये ही संसार दुःख का नाश हो जाता है । अर्थात् मुक्त हो जाता है ।
(क्रमशः)
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