रविवार, 14 फ़रवरी 2021

*गज ग्राह*

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*दादू पलक मांहि प्रकटै सही, जे जन करैं पुकार ।*
*दीन दुखी तब देखकर, अति आतुर तिहिं बार ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विनती का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*गज ग्राह*
*छप्पय-*
*अथग विमल जल सिन्धु,*
*पाव कहुं टिकैं न धरणी ।*
*तब संगी तज गये,*
*सकल सुत सब ही धरणी ॥*
*वर्ष सहस युध कियो,*
*लियो तब खैंचि मांहि जल ।*
*गज कायर ह्वै रह्यो,*
*गयो मन को सब छल बल ॥*
*बल बीत्यो डूबण लाग्यो,*
*जीत लियो जब निपट अरि ।*
*राघव रटत रंकार के,*
*तत क्षन विमुचायो सु हरि ॥८६॥*
त्रिकुट पर्वत के वन में रहने वाला गजराज एकदिन अपने यूथ के साथ वहां के विशाल सरोवर पर पानी पीने गया था । सबने पानी पिया । फिर सब के सब जल क्रीड़ा करने लग गये । उस सरोवर में एक महाबली ग्राह रहता था । उसने गजराज का पैर पकड़ लिया और गहरे जल में ले जाने लगा । सरोवर का जल अथाह और विमल था । इस समय गजराज का पैर कहीं भी पृथ्वी पर नहीं टिक रहा था ।
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गजराज पैर छुड़ाने का यत्न करने लगा और ग्राह उसे जल में खेंचने लगा । गजराज को विपत्ति में पड़ा देखकर हथनियां चीत्कार करने लगीं । अन्यान्य हाथी सब सूंड में सूंड मिलाकर गजराज को छुड़ाने की चेष्टा करने लगे किन्तु नहीं छुड़ा सके । तब साथ के सब हाथी, गजराज के सब पुत्र, और गजराज की सब हथनियां गजराज को छोड़कर वन में चले गये ।
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गज ग्राह को बाहर खैंचता था और ग्राह गज को जल के भीतर खैंचता था । गज ग्राह का यह युद्ध एक हजार वर्ष तक चलता रहा ।
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अन्त में गज निर्बल हो गया और ग्राह का बल बढ़ गया । तब ग्रह ने गज को जल के मांहिं खैंच लिया ।
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गज कायर हो गया, उसके मन का तथा तन का सारा बल और युद्ध की चतुराई रूप छल नष्ट हो गया ।
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बल नष्ट होने पर गज डूबने लगा और उसने जब जान लिया कि शत्रु ने मुझे सर्वथा जीत लिया है तब राम शब्द के बीज मंत्र ‘राँ’ को रटने लगा और परमात्मा हरि को पुकार कर उनकी स्तुति की । उसे सुनकर हरि गरुड़ पर बैठकर गजराज के पास आ पहुँचे । उसने उन्हें देखकर एक कमल फूल ऊंचा उठाकर हरि को नमस्कार किया । भगवान् गरुड़ से उतरे और ग्राह के सहित गज को बाहर निकाल कर ग्राह का शिर चक्र से काट डाला और उसी क्षण गजराज को छुड़ा दिया ।
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जिसने गज को पकड़ा था, यह ग्राह पूर्व जन्म में हु हु नामक गन्धर्व था । पीछे देवल ऋषि के शाप से ग्राह हो गया था । भगवत् कृपा से शाप से मुक्त होकर तथा ग्राह शरीर त्याग कर सुन्दर शरीर धारण किया फिर भगवान् को नमस्कार करके अपने लोक को चला गया । गजराज भी भगवान् के समान पीताम्बर धारण करके चतुर्भुज हो गया । गजराज पूर्व जन्म में इन्द्रध्युम्न नामक पाण्डव देश का राजा था । भगवान् का भक्त था, राज्य छोड़कर कुलाचल पर एक आश्रम में तपस्वी भेष बनाकर भजन करता था । एक दिन शिष्यों के सहित अगस्त्य जी वहां आ गये । राजा ध्यान में था । उनका सत्कार नहीं कर सका, इससे उन्होंने शाप दिया-यह हाथी के समान मदमस्त हो रहा है अतः हाथी की योनि में ही जाय । राजा भी इसका कारण दैव को जानकर गज योनि को प्राप्त हो गये । अब भगवान् ने संकट से छुड़ाकर अपना पार्षद बना लिया और साथ लेकर अपने धाम को चले गये ।
(क्रमशः)

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