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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“अष्टमोल्लास” ३४/३६)
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*दादूजी ने राजा को वरदान*
*(स्वामी) हरि की खुशी करो तुम राजू,
दासा तन करि सोहे काजू ।*
*करो राज तुम खुसी हमारी,
गर्भ न आवो दूजी वारी ॥३४॥*
स्वामी ने कहा- इसमें हरि की प्रसन्नता है तुम सेवक भाव से राज काज करते रहो, तुम राज करो इसमें हम भी प्रसन्न हैं तुम पुन: गर्भ में नहीं आवोंगे ॥३४॥
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*दोनों राज्यों में दो राजा*
*धरयाजू को ज्याव धरी सुत,*
*पदमसिंघ को वसंत राइ पुत ।*
*रहे दोऊ निज राज करन को,*
*बचे सभी चले गये बन को ॥३५॥*
तब धरा जयमल का पुत्र ज्यावधरी और पदमसिंघ का पुत्र बसंत राइ दोनों राज करने कि लिये रह गये बचे सभी पुत्र वन को चले गये ॥३५॥
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*आठ सै पुत्र वन में भक्ति में लीन*
*पुत्र अष्ट सै धरयाजु के कहे,*
*गये त्यागि जाइ वन में रहै ।*
*पदमसिंघ सुत षष्ट सै गाया,*
*सबही जाइ के बन में छाया ॥३६॥*
राजा धरा जयमल के ८००(आठ सौ) पुत्र थे एवं पदसिंघ के ६००(छ: सौ) पुत्र थे वे सभी संसार त्याग कर वन में चले गये ॥३६॥
(क्रमशः)

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