शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

*अन्य मत-*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू विष की बेली बाहिये, विष ही का फल होइ ।*
*विष ही का फल खाय कर, अमर नहिं कलि कोइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ बेली का अंग)*
=================
*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
.
*अन्य मत-*
*भयो हूँ पिशाच तेरी कूंखि अवतार लियो,*
*मेरे जाने निपट१ पिशाचनी तू कैकई ।*
*हंस हत कुमति तैं बांध धरे वायस को,*
*अमृत लुटाय के जु वेलि विष की बई ॥*
*कमल से कोमल चरण रघुवीर जी के,*
*कैसे वन जैहैं कुश-कण्टक मही छई ।*
*मैं तो मरि जेहूं मो सों कैसे दुःख सह्यो जात,*
*होनहार हुई और कहा होयगी दई ॥८४॥*
भरतजी माता के सामने राम वियोग जन्य व्यथा से व्यथित होकर विलाप कर रहे हैं- कैकयी ! तुम मेरे विचार से तो निरी१ पिशाचनी हो और तुम्हारे गर्भ से मैंने जन्म लिया है, इसलिये मैं भी पिशाच ही हूँ ।
.
हे कुमति वाली ! तुमने तो ऐसा काम किया है- जैसे हंस को मारकर उसके स्थान में काक को बाँध कर रक्खा जाय तथा अमृत को लुटाकर विष की वेली बोई जाय ।
.
रघुवीर रामजी के चरण तो कमल के समान कोमल हैं, वे कुश और कांटों से भरी हुई वन की भूमि पर कैसे चल सकेंगे ?
.
मैं तो अब मर ही जाऊंगा, मेरे से राम-वनवास का दुःख कैसे सहा जा सकता है? है ईश्वर ! जो होनहार था सो तो हो गया अब और क्या होने वाला है ?
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें