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*दादू निर्मल करणी साधु की, मैली सब संसार ।*
*मैली मध्यम ह्वै गये, निर्मल सिरजनहार ॥*
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*श्री रज्जबवाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*नितिज्ञ का अंग १३९*
इस अंग में नीति जाननेवालों के संबंधी विचार कर रहे हैं ~
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रज्जब देखो दिब१ दृष्टि, दिवस माँहिं देदीप२ ।
साँच झूठ निर्णय भया, पावक परस समीप ॥१॥
सत्यासत्य निर्णय करने के तप्त लोहे के गोले१ में दिन में भी चमकता२ हुआ सत्य नीति की दृष्टि से देखो, पास में ही अग्नि स्पर्श से सत्य झूठ का निर्णय हो जाता है, सत्य झूठ का निर्णय कर देने से तप्त लोह गोला नितिज्ञ है ।
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रज्जब निरखहु नीर-निधि१, अतिगति२ नीतीज्ञ अंग३ ।
सांचा राख्या संचि४ उर५, नहिं झूंठे सौ संग ॥२॥
देखो, समुद्र१ में अत्याधिक२ नीतिज्ञ के लक्षण३ हैं, सच्चे मोती आदि को तो संग्रह४ करके भीतर५ रखता है और झूठे कूड़े आदि का संग नहीं करता, नदियों द्वारा आने पर बाहर फैंक देता है ।
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मही१ मध्य माणस मरैं, जीवै जलंध्री नाद२ ।
पुहमि३ सु पीड़ा ना करी, देखो दिशि प्रहलाद ॥३॥
पृथ्वी१ में दब जाने पर मनुष्य मर जाते हैं किंतु जलंधरनाथ नीतिज्ञ होने से शब्द२ ब्रह्म के चिन्तन बल से जीवित रहे । देखो नीतिज्ञ प्रहलाद की ओर, उसके शरीर में भी पृथ्वी३ ने व्यथा उत्पन्न नहीं करी ।
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प्रहलाद प्रतिज्ञा पूरिये, हिरनाकुश हत१ डार२ ।
रज्जब रोस३ न रीस४ यहु, निर्मल नीति विचार ॥४॥
प्रहलाद की ‘राम नाम नहीं छोड़ूंगा’ यह प्रतिज्ञा पूर्ण की और हिरण्याकशिपु को मार१ डाला२ किंतु उसे मारने का क्रोध३ क्रोध४ नहीं था, वह तो निर्मल नीति का ही विचार था । प्रहलाद की नीति निर्मल थी इससे नीतिज्ञ प्रभु ने उसकी रक्षा की थी । हिरण्याकशिपु की नीति दूषित थी इससे उसका वध किया था ।
(क्रमशः)

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