शनिवार, 6 फ़रवरी 2021

*ईश्वर-दर्शन के उपाय*

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*सबै सयाने कह गये, पहुँचे का घर एक ।*
*दादू मार्ग माहिं ले, तिन की बात अनेक ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साँच का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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परिच्छेद ७३
*ईश्वर-दर्शन के उपाय*
(१)
*श्रीरामकृष्ण तथा तान्त्रिक भक्त*
आज पौष शुक्ला चतुर्थी है; २ जनवरी १८८४ । श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ दक्षिणेश्वर के कालीमंदिर में निवास कर रहे हैं । आजकल राखाल, लाटू, हरीश, रामलाल, मास्टर दक्षिणेश्वर में निवास कर रहे हैं ।
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दिन के तीन बजे का समय होगा – श्रीरामकृष्ण का दर्शन करने के लिए मणि बेलतला स उनके कमरे की ओर आ रहे हैं । मणि ने आकर भूमि पर माथा टेककर प्रणाम किया । श्रीरामकृष्ण ने उन्हें अपने पास बैठने के लिए कहा । सम्भव है, तांत्रिक भक्त के साथ वार्तालाप करते करते उन्हें भी उपदेश देंगे । श्री महिम चक्रवर्ती ने तांत्रिक भक्त को श्रीरामकृष्ण का दर्शन करने के लिए भेजा है । भक्त गेरुआ वस्त्र धारण किये हैं ।
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श्रीरामकृष्ण – (तान्त्रिक भक्त के प्रति) – ये सब तान्त्रिक साधना के अंग हैं; कपालपात्र में सुधा का पान करना ! उस सुधा को कारणवारि कहते हैं, है न ?
तान्त्रिक – जी हां !
श्रीरामकृष्ण – ग्यारह पात्र, न ?
तान्त्रिक – तीन तोला भर ! शव-साधना के लिए ।
श्रीरामकृष्ण – पर मैं तो सुरा छू तक नहीं सकता ।
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तान्त्रिक – आपका सहजानन्द है, यह आनन्द होने पर और फिर क्या चाहिए !
श्रीरामकृष्ण – फिर देखो, मुझे जप-तप भी अच्छे नहीं लगते । सदा स्मरण-मनन रहता है । अच्छा, षट्चक्र क्या चीज है ?
तान्त्रिक – जी, वह सब अनेक तीर्थों की तरह है । प्रत्येक चक्र में शिव शक्ति विराजमान हैं, वे आँखों से देखे नहीं जाते, शरीर काटने पर भी नहीं मिलते ।
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मणि चुपचाप सब सुन रहे हैं, उनकी ओर देखकर श्रीरामकृष्ण तान्त्रिक भक्त से पूछ रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण – (तान्त्रिक के प्रति) – अच्छा, बीजमन्त्र पाये बिना क्या कुछ सिद्ध होता है ?
तान्त्रिक – होता है, विश्वास द्वारा – गुरुवाक्य पर विश्वास !
श्रीरामकृष्ण –(मणि की ओर इशारा करके) – विश्वास !
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तान्त्रिक भक्त के चले जाने पर ब्राह्म समाज के श्री जयगोपाल सेन आये । श्रीरामकृष्ण उनके साथ वार्तालाप कर रहे हैं । राखाल, मणि आदि भक्तगण पास बैठे हैं । तीसरे पहर का समय है ।
श्रीरामकृष्ण – (जयगोपाल के प्रति) – किसी से, किसी मत से विद्वेष नहीं करना चाहिए । निराकारवादी, साकारवादी, सभी उन्हीं की ओर जा रहे हैं; ज्ञानी, योगी, भक्त सभी उन्हें खोज रहे हैं । ज्ञानमार्ग के लोग कहते हैं, ब्रह्म; योगीगण कहते हैं आत्मा, परमात्मा; भक्तगण कहते हैं, भगवान्; फिर यह भी है, नित्यदेव नित्यदास ।
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जयगोपाल – कैसे जानूँ कि सभी पथ सत्य हैं ?
श्रीरामकृष्ण – किसी एक पथ से ठीक-ठीक जा सकने पर उनके पास पहुँचा जा सकता है, उस समय सभी पथों का पता भी जाना जा सकता है । जैसे एक बार किसी तरह यदि छत पर उठना सम्भव हो सके, तो लकड़ी की सीढ़ी से भी उतरा जा सकता है, पक्की सीढ़ी से भी, एक बाँस के सहारे भी और एक रस्सी के द्वारा भी ।
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“उनकी कृपा होने पर भक्त सब कुछ जान सकता है । उन्हें एक बार प्राप्त करने पर सब कुछ जान सकोगे । एक बार किसी भी तरह बड़े बाबू के साथ साक्षात्कार करना चाहिए, उनसे बातचीत करनी चाहिए – तब बाबू स्वयं ही बता देंगे कि उनके कितने बगीचे, तालाब, या कम्पनी के कागज़ हैं ।”
(क्रमशः)

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