शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

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*दादू इक निर्गुण इक गुणमयी, सब घट ये द्वै ज्ञान ।*
*काया का माया मिले, आतम ब्रह्म समान ॥*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---साधना
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समाधि वैश्य और राजा सुरथ अपने सम्बन्धियों में अपमानित होकर वन में चले गये थे । समाधि वैश्य एक मुनि के आश्रित रहते थे । राजा सुरथ भी उनसे जा मिले । दोनों की मनोदशा और बाह्य परिस्थिति एक सी ही थी । मुनि ने दोनों को ही "दुर्गा - सप्तशती" सुनाई थी । दोनों एक ही साधना में लगे थे । अन्त में भाव का भेद होने से भगवती ने सुरथ को भोग ओर समाधि व वैश्य की मुक्ति प्रदान की थी । इससे यह सिद्ध है कि भाव - भेद से एक साधन भी विभिन्न फलों का प्रदाता हो जाता है ।
एक साधन भिन्न फल, भाव भेद से होय ।
सुरथ वा समाधि वैश्य की, कथा बतावत सोय ॥१५०॥

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