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*धरती अम्बर रात दिन, रवि शशि नावैं शीश ।*
*दादू बलि बलि वारणें, जे सुमिरैं जगदीश ॥*
*जे जन राते राम सौं, तिनकी मैं बलि जांव ।*
*दादू उन पर वारणे, जे लाग रहे हरि नांव ॥*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---एकाग्रता
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नरायणा(नारायणा धाम) गांव के रधुनाथजी के मंदिर में सन्तवर दादूजी ठहरे हुये थे । उसमें विशेष चित्रकारी होने से दर्शकों की भीड़ बहुत आती थी । उससे ध्यान में विघ्न होने के कारण दादूजी के हृदय में संकल्प हुआ कि यह चित्रकारी नहीं होती तब तो इतने लोग यहां नहीं आते और मेरी एकाग्रता में विघ्न नहीं होता । इस संकल्प के होते ही संपूर्ण चित्रकारी क्षण भर में ही लय हो गई । इससे सूचित होता है कि एकाग्र का संकल्प क्षण भर में ही सत्य हो जाता है ।

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