शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

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*दादू सबही व्याधि की, औषधि एक विचार ।*
*समझे तैं सुख पाइये, कोइ कुछ कहो गँवार ॥*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---शांती
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एक परम शांत संत एक स्थान पर बैठे भजन कर रहे थे । एक दुष्ट मनुष्य को उनका वहां बैठना अच्छा न लगा । इसलिये वह उन्हे गालियां देने लगा । तब संत ने विचार किया कि गालियों की चोट तो शरीर पर किंचिंत मात्र भी नहीं लगती, केवल मन पर ही अधात पहुंचाता है, और बाद में शरीर के मुख आदि अंगों में विकार होता है ।
इससे ज्ञात होता है कि मनोधारणा ही सुख दु:ख में हेतु है । ऐसा विचार करके संत ने गालियों को स्तुति मान लिया और प्रसन्न रहे ।
तब दुष्ट ने उनके एक दो डण्डे भी मार दिये । तब भी संत यह विचार करे कि प्राणी को सुख दु:ख कोई दूसरा नहीं देता, सुख दु:ख तो अपने ही कर्म का फल है, दूसरा तो निमित्तमात्र है । मेरे जो इसने डण्डे मारे हैं इससे तो यह मेरा सहायक है क्यों कि मेरे पाप के फलस्वरूप डण्डे मार करके इसने मुझे निष्पाप किया है, यह विचार करके प्रसन्न ही रहे ।
दुष्ट के अन्य उपायों से भी उनकी शांती नहीं टूटी । इससे ज्ञात होता है कि शांत पुरुष कटु वचनादि से अशांत नहीं होते ।
कटु वचनादिक से नहीं, होते शांत अशांत ।
कर विचार निज चित्त में, संत रहे इक शांत ॥३७१॥

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