मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

*गणपतिजी*

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*पूजूं पहली गणपति राइ,*
*पड़िहौं पावों चरणों धाइ ।*
*आगै ह्वै कर तीर लगावै,*
*सहजैं अपने बैन सुनाइ ॥टेक॥*
*कहूँ कथा कुछ कही न जाई,*
*इक तिल में ले सबै समाइ ॥१॥*
*गुण हु गहीर धीर तन देही,*
*ऐसा समरथ सबै सुहाइ ॥२॥*
*जिस दिशि देखूं ओही है रे,*
*आप रह्या गिरि तरुवर छाइ ॥३॥*
*दादू रे आगै क्या होवै,*
*प्रीति पिया कर जोड़ लगाइ ॥४॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ पद. ८९)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*गणपतिजी*
*प्रथम आदेश है गनेश गवरी के सुत,*
*जाचैं जाहि वंदीजन विद्या को निधान१ है ।*
*चतुर निगम नव द्वादश पुराण पढै,*
*जानैं दश च्यार छः रु जेतो गुन गान है ॥*
*लक्षण बत्तीस जगदीश के सहस्त्र नाम,*
*पाठ करै आठों याम ऐश्वर्य आसान है ।*
*राघो कहै बीनऊं विनायक विद्या के गुरु,*
*मानैं नर-नारी-सुर जानन२ को जान३ है ॥७४॥*
गणों के ईश्वर पार्वती जी के पुत्र गणेशजी को मैं प्रथम प्रणाम करके उनका यशगान करता हूँ । वंदीजन जिनसे याचना करते रहते हैं, वे गणेश जी विद्या के आधार१ हैं ।
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ऋगादि चारों वेद, पाणिनीय आदि नव व्याकरण, द्वादश स्कन्द वाले श्रीमद्भागवत आदि १८ पुराण, दश चार(१४) विद्यायें, न्यायादि छः दर्शन शास्त्र और भी जितना प्रभु का गुणगान वा जो भी गुणमय गान हैं उन सब को गणेश जी जानते हैं ।
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आप दैवी गुण रूप बत्तीस लक्षणों से संपन्न हैं । जगदीश्वर परमात्मा के सहस्त्र नामों का पाठ आप आठों पहर करते रहते हैं । आपके लिये सभी ऐश्वर्य सुगम हैं । आप विद्याओं के प्रदाता गुरु हैं ।
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आपको देवता आदि संपूर्ण नरनारी ज्ञानियों२ का भी ज्ञानी अर्थात् महाज्ञानी मानते हैं । ऐसे आप विनायक जी को मैं राघवदास विनय पूर्वक प्रणाम करता हूँ ।
(क्रमशः)

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