सोमवार, 1 फ़रवरी 2021

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🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
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*चहुं दिशि पसर्यो बिन रखवाले, चोर न लूटै रै ॥*
*हरि हीरा है राम रसायन, सरस न सूखै रे ॥*
*दादू और आथि बहुतेरी, तुस नर कूटै रे ॥*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---साधना
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अवन्ती प्रदेश के कुरघर नगर में साधु कोटिकर्ण पधारे थे । उनका प्रवचन सुनने के लिये बड़ी भीड़ होती थी । श्राविका कातियानी भी नियमपूर्वक कथा श्रवण करती थी । अवसर जानकर कातियानी के घर में सेंध लगाकर चोर घुस गये । संयोगवश कातियानी ने दासी से कहा - घर जाकर कथा के दीपक के लिये तेल ले आ । दासी गई किन्तु सेंध लगी देखकर बाहर से ही लौट आई और कातियानी से बोली - आप शीध्र चलें, घर में चोर है । 
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कातियानी ने धीरे से कहा - चुपचाप बैठ जा, कथा में विध्न मत कर । चोर धन ही तो ले जायेंगे, मेरे प्रारब्ध में धन होगा तो फिर मिल जायेगा, किन्तु यह उपदेश फिर कहां से प्राप्त होगा ? चोरों का सरदार देख रेख के लिये घर के बाहर खड़ा था, वह गुप्त रूप से दासी के पिछे आया था । उसने कातियानी और दासी की उपयुक्त बातें सुनी, तब उसके मन में चोरी से बड़ी ग्लानी हुई और उसने सोचा ऐसी धर्मात्मा नारी के चोरी करना महापाप है । 
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तत्काल लौट अपने साथियों से कहा - इस घर में कुछ भी मत लो । कातियानी के घर आने पर चोरों ने उससे क्षमा मांगी और सदा के लिये चोरी करना छोड़ दिया । इससे ज्ञात होता है कि साधकों के मन में धनादि का प्रेम नही होता ।
साधकजन के हृदय में, हो न धनादिक प्रेम ।
कातियानि ने नहिं तजा, कथा श्रवण का नेम ॥२१५॥

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