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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“अष्टमोल्लास” ४०/४२)
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*बहुत भांति कीज्यो अति सेवा,*
*भाव भक्ति का कहियो मेवा ।*
*ज्ञान, ध्यांन सिखावनी दीज्यौ,*
*सबका हूं उपगार सु कीज्यौ ॥४०॥*
इनकी बहुत भांति से खूब सेवा करना, और भाव भक्ति का रहस्य भी बताते रहना । ज्ञान ध्यान की भी शिक्षा देना उक्त प्रकार सभी का उपकार करना ॥४०॥
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*आपन करौ अरु और कराऊ,*
*सब की लाज तुम्है है राऊ ।*
*इस्त्री लाज सु पति बखांन,*
*लाज गांव की जो प्रधान ॥४१॥*
स्वयं भजन करते हुये अन्य सभी से भी भजन करवाना । इन सब राणियों स्त्रियों की लाज तुम्हारे ही हाथ है । स्त्री की लज्जा पति से रहती है और गांव की लज्जा गांव प्रधान से रहती है ॥४१॥
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*सिष की पति गुरु कौं होई,*
*पुत्र की पति तात को सोई ।*
*भजनानदी केवल संतू,*
*ताकी लाज सदा भगवंतू ॥४२॥*
शिष्य की रक्षा गुरु से रहती है, पुत्र की रक्षा माता पिता से रहती है, केवल भजनानंदी संतों की रक्षा भगवान से रहती है ॥४२॥
(क्रमशः)

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