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🦚 *#श्रीसंतगुणसागरामृत०३* 🦚
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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“अष्टमोल्लास” ४/६)
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*राम राम मंत्र कहयो, श्रवण द्वारि सुनाई ।*
*उबारि लीये संसार सूं, साचै सतगुरु आइ ॥४॥*
सच्चे सतुगुरु दादूजी ने आकर श्रवण के द्वार से राम राम का मंत्र सुनाकर हमें संसार सागर से उबार लिया ॥४॥
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*सद्गुरु महिमा*
*सतगुरु आया, तिमिर मिटाया*
*कहि समझाया, ज्ञांन बहाया ।*
*इष्ट बताया रांम रहाया,*
*मिथ्या माया, झूठी काया ।*
*नहीं भरमाया, कर्म उड़ाया,*
*ध्यान दिढाया, (प्रभु)सत्य बताया ।*
*गुरु दादू आया, राम पठाया,*
*ससि कहाया, अमृत पाया ।*
*ज्यूं तरवर छाया, चंदन गाया,*
*पलटे काया, मेघ वर्षाया ।*
*आनंद बढाया, ज्यूं पारस पलटाया,*
*चंबक लाया, भृत्यु अंग लगाया ।*
*हरि जगमग गाया, निर्मोल निपाया ॥५॥*
सतगुरु के द्वारा किये गये उपकार के विषय में बताया है कि जब सतगुरु आये तो उन्होंने ज्ञान प्रदान कर संसार माया का अन्धकार समाप्त कर दिया, उन्होंने कहकर समझाया और ब्रह्मज्ञान प्रदान किया, अपने इष्ट निरंजन राम को बताया, राम में रमण करने का ज्ञान दिया, माया व काया दोनो ही असत्य हैं । उन्होंने अनेक देवी देवताओ के भ्रम में नहीं डाला मेरे तीनों प्रकार के कर्म बन्धनों से मुक्त किया, सच्चा मार्ग दिखाकर प्रभु में दृढ ध्यान दिलवाया । जब सतगुरु दादूजी आये तो उन्होंने निरंजन राम के मार्ग पर लगाया । चन्द्रमा के समान शीतल हृदय होने से ज्ञानरूपी अमृत का पान करवाया । जिस प्रकार वृक्ष की छाया में विश्राम मिलता है उसी प्रकार गुरुकृपा में विश्राम मिलता है । मेघ ज्ञानरूप वर्षा करता है । ब्रह्मानंद की वृद्घि करता है । पारस से लोहा स्वर्ण में बदल जाता है इसी प्रकार सतगुरु साधक को निरंजन बना देता है चुंबक के समान निरंजन के प्रति आद्भष्ट करता है एक साधारण सेवक को अपने गले लगाया, हरि भजन का ज्ञान करवाया और अमूल्य ब्रह्मानंद की प्राप्ति करवाई ॥५॥
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*कामधेनु चिंतामणी, कलिप ब्रिक्ष कहाया ।*
*सबकी पूरे कामनां, जिनि निश्चै ध्याया ॥६॥*
जिन्होंने निश्चयकर दृढता के साथ सतगुरु का ध्यान किया उसकी सतगुरु ने सब इच्छायें कामनायें पूर्ण कर दी एवं सतगुरु, कामधेनु, चिन्तामणी कल्पवृक्ष कहलाये क्योकि ये तीनों भी सबकी इच्छापूर्ण करते हैं ॥६॥
(क्रमशः)

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