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*अंधे को दीपक दिया, तो भी तिमिर न जाय ।*
*सोधी नहीं शरीर की, तासन का समझाइ ॥*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---साधना
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सर्प की ज्यों ज्यों आयु बढती है, त्यों त्यों वह पीछे से गलता जाता है, इससे छोटा हो जाता है और हजार वर्ष का होने पर उसके पंख आ जाते हैं । विष बहुत बढ जाता है और इससे उसके जलन होने लगती है, चन्द्रमा की किरण उसे शीतल ज्ञात होती है । इससे वह उड़कर चन्द्रमा की ओर जाता है । ऊपर वायुमंडल में पहुचने पर अति श्रेष्ठ चन्दन की वायु उसके लगती है, वह चन्द्र से भी अधिक शीतल ज्ञात होती है, इसलिये वह चन्द्रमा की ओर जाना छोड़कर चन्दन की वायु के मार्ग में जाकर चन्दन पर लिपट जाता है, इससे उसके विष की जलन कम होकर उसे शांति मिलती है । इसी प्रकार अधिकार प्राप्त साधन से शांति मिलती है । चींटियों को एक ही दिन में पंख प्राप्त होती है, इसलिये वे अग्नि में जलकर मर जाती हैं । इसी प्रकार अनाधिकार साधन से अन्त में विनाश होता है ।
साधन अनाधिकार का, अन्त करत है नाश ।
पंख सर्प को शांति दे, चींटिन करत विनाश ॥१७२॥

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