बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

*सत्संग प्रभाव(१)*

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*मीठे मांही राखिये, सो काहे न मीठा होइ ।*
*दादू मीठा हाथ ले, रस पीवै सब कोइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*सत्संग प्रभाव*
*उद्धव विदुर अक्रूर,*
*भये मोक्षारथ मैत्रे ।*
*गांधारी धृतराष्ट्र,*
*रु संजय सारथि है त्रे ॥*
*श्रुतदेव रु बहुलाश्व,*
*आश मन की सब पूरी ।*
*मित्र सुदामा जान,*
*किया सब ही दुख दूरी ॥*
*शोकसिन्धु से काढ़ के,*
*किये महाजन मुक्त रे ।*
*राघव सूखे काठ सब,*
*होत अबै सतसंग हरे ॥८९॥*
*१.उद्धव-* जी एक यादव थे । श्रीकृष्ण के सखा एवं मंत्री भी थे । शाल्व ने चढ़ाई की तब इनने द्वारकापुरी की सुरक्षा की थी । यदुवंशियों के मंत्री-मण्डल में भी इनका एक प्रधान स्थान था । भगवान् श्रीकृष्ण ने इन्हें गोपियों को समझाने के लिये व्रज में भेजा था । भगवान् श्रीकृष्ण ने इनको उपदेश किया था सो श्रीमद्भागवत एकादश स्कन्द में प्रसिद्ध है । श्रीकृष्णजी ने इन्हें बदरिकाश्रम भेज दिया था । ये भगवान् के अनन्य भक्त थे । सतसंग के प्रभाव से ही उद्धवजी महान भक्त बने थे ।
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*२.विदुर-* व्यास जी के द्वारा अम्बिका की दासी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे । अणिमाण्डव्य के शाप से धर्मराज ने ही शुद्र योनि में विदुर होकर जन्म लिया था । ये राजा धृतराष्ट्र तथा पाण्डु के भाई थे । भीष्म जी ने इनका पालन पोषण किया था । राजा देवक के घर में स्थित तथा ब्राह्मण द्वारा शुद्र के गर्भ से उत्पन्न हुई कन्या के साथ भीष्म जी ने इनका विवाह किया था । दुर्योधन के जन्मकाल में होने वाले अमंगलों को देखकर उसे त्याग देने का परामर्श इनने धृतराष्ट्र को दिया था । ये सदा पांडवों के हित का यत्न करते रहते थे । जब युधिष्ठिर कुरुक्षेत्र गये थे तब एक दिन मुख में पत्थर का टुकडा लिये जटाधारी, कृशकाय विदुरजी को आते देखा । वे दिगम्बर थे आश्रम की ओर देखकर पीछे लौट गये । युधिष्ठिर उनके पीछे पीछे दौड़े और अपना परिचय दिया । विदुर ठहर गये । युधिष्ठिर के सामने खड़े होने पर वे अपने स्थूल शरीर को छोड़कर युधिष्ठिर में लय हो गये । युधिष्ठिर ने उनके शरीर का दाह संस्कार करने का विचार किया किन्तु आकाशवाणी ने रोक दिया और कहा-विदुर को सांतानिक नामक लोकों की प्राप्ति होगी । विदुर जी सत्संग से ही महानता को प्राप्त हुए थे ।
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*३.अक्रूर-* अक्रूरजी यदुवंशान्तगर्त सात्वत वंशीय श्वफल्क के पुत्र थे, इन्हें दान पति भी कहते थे । ये वृष्णिवीरों के सेनापति थे । इनकी माता का नाम ‘गान्दिनी’ और पत्नी का नाम ‘सुतनु’ था । वह आहुक की पुत्री थी । अक्रूर जी में वन्दना भक्ति प्रधान थी । भगवान् श्रीकृष्ण को लाने के लिये कंस ने इन्हें भेजा था । इन की इच्छा भी भगवान् के दर्शन करने की थी । भगवान् ने स्वतः ही यह योग बना दिया । जब वृन्दावन के पास पहुँच कर इन्होंने वज्र, अंकुश, यव, ध्वजा आदि चिन्हों से युक्त भगवान् के चरण चिन्ह को देखा तो रथ से उतर कर उनको वन्दना की और उस धूलि में लौटने लगे । वृन्दावन से लौटते समय जमुना के तट पर अक्रूर जी नित्य कर्म करने ठहरे । स्नान के लिये डुबकी लगाते ही भीतर चतुर्भुज भगवान् के दर्शन हुये । ऊपर देखा तो रथ में भी बैठे हैं । इससे अक्रूर को ज्ञान हो गया भगवान् सर्वत्र व्यापक हैं । ये भगवान् के प्रिय भक्त थे । सत्संग से ही ये उच्च स्थिति को प्राप्त हुये थे ।
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*४.मैत्रेय-* मैत्रेय जी पहले किसी जन्म में कीट थे । वह कीट मार्ग में बैलगाड़ी की लीकों में दौड़ रहा था । व्यासजी ने पूछा- क्यों दौड़ रहा है? उसने कहा- बैलगाड़ी के आने का शब्द हो रहा है, उसके आने से मैं दबकर मर जाऊंगा । अतः अपने को बचाने के लिये दौड़ रहा हूँ । व्यासजी ने कहा- इस शरीर में क्या सुख है, छोड़ दे । उसने कहा- अपनी योनि तथा शरीर सबको प्रिय होता है । किन्तु व्यासजी ने समझाया मैं तेरी उत्तरोत्तर उन्नति करूंगा छोड़ दे यह शरीर । व्यासजी का वचन मान कर कीट गाड़ी के पहिये के नीचे आकर मर गया, फिर व्यासजी उसकी प्रत्येक योनि में उसे उपदेश करते रहे । अंत में वही कीट व्यासजी के सत्संग के प्रभाव से मैत्रेय ऋषि बने थे । सत्संग के प्रभाव से मैत्रेय मोक्ष के भागी हो गया । सत्संग का प्रभाव ऐसा ही है ।
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*५.गांधारी-* गान्धारराज सुबल की पुत्री थी । ये मति के अंश से उत्पन्न हुई थी । इन्होंने भगवान् शंकर की आराधना करके उनसे अपने लिये सौ पुत्र प्राप्त होने का वरदान पा लिया था । पिता ने इनका धृतराष्ट्र के लिये वाग्दान किया । जब इनने सुना मेरे भावी पति अन्धे हैं, तब इनने भी नेत्रों के पट्टी लगा ली थी । गान्धारी पतिव्रत परायणा थीं । व्यासजी आदि के सत्संग से गान्धारी जी की उन्नति हुई थी । सत्संग से ही उनका सुयश हुआ था ।
(क्रमशः)

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