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*वैर विरोधे आत्मा, दया नहीं दिल मांहि ।*
*दादू मूरति राम की, ताको मारन जांहि ॥*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---साधना
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मारवाड़ के एक गांव की बात है, एक गुसाई साधु एक जाट के खेत का वृक्ष काट रहा था, जाट ने उसे मना किया किन्तु उसने नहीं माना । तब जाट ने उसे दो-चार मार दी । साधू को मूठ चलाना आता था, उसने जाट पर मूठ का प्रयोग किया, जाट मर गया । इसी प्रकार उस साधु ने जाट के कुल के सात व्यक्तियों को एक ही दिन में आगे-पीछे मार दिये । इससे सूचित होता है कि मारण-साधना से कर्त्ता को महापाप होता है ।
मुठ आदि मरण किये, कर्त्ता को महापाप ।
सात मृत्यु इक दिन हुई, सब कुल को सन्ताप ॥१६४॥

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