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*ब्रह्म भक्ति जब उपजै, तब माया भक्ति बिलाइ ।*
*दादू निर्मल मल गया, ज्यूँ रवि तिमिर नसाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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श्रीरामकृष्ण – भक्ति से ही सब कुछ प्राप्त होता है । जो लोग ब्रह्मज्ञान चाहते हैं, यदि वे भक्तिमार्ग पकड़े रहें, तो उन्हें ब्रह्मज्ञान भी हो जाता है ।
“उनकी दया रहने पर क्या कभी ज्ञान का अभाव भी होता है ? उस देश में(कामारपुकुर में) धान नापते हैं । जब राशि चूक जाती है, तब एक आदमी और धान ठेल देता है, इस तरह राशि फिर तैयार हो जाती है । माँ ही ज्ञान की राशि पूरी करती जाती हैं ।
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“उन्हें प्राप्त कर लेने पर पण्डितगण सब घास-पात की तरह जान पड़ते हैं । पद्मलोचन ने कहा था, तुम्हारे साथ अछूतों के घर की सभा में भी जाऊँगा, इसमें भला हर्ज ही क्या है ? –तुम्हारे साथ चमार के यहाँ भी जाकर मैं भोजन कर सकता हूँ ।
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“भक्ति के द्वारा सब मिलते हैं । उन्हें प्यार कर सकने पर फिर कसी चीज का अभाव नहीं रह जाता । माता भगवती के पास कार्तिकेय और गणेश बैठे हुए थे । उनके गले में मणियों की माला पड़ी थी । माता ने कहा, जो पहले इस ब्रह्माण्ड की परिक्रमा करके आ जायगा, उसी को मैं यह माला दे दूँगी । कार्तिक उसी समय फ़ौरन ही मयूर पर चढ़कर चल दिये । गणेश ने धीरे-धीरे माता की परिक्रमा करके उन्हें प्रणाम किया । गणेश जानते थे, माता के भीतर ही ब्रह्माण्ड है । माँ ने प्रसन्न होकर गणेश को हार पहना दिया । बड़ी देर बाद कार्तिक ने आकर देखा कि उनके दादा हार पहने हुए बैठे थे ।
“मैंने माँ से रो-रोकर कहा था, ‘माँ ! वेद-वेदान्त में क्या है, मुझे बता दो, - पुराण-तन्त्रों में क्या है, मुझे बता दो ।’
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“उन्होंने मुझे सब कुछ बता दिया है – कितनी बातें दिखायी हैं ।
“सच्चिदानन्द गुरु को रोज प्रातःकाल पुकारते हो न ?”
मणि – जी हाँ ।
श्रीरामकृष्ण – गुरु कर्णधार हैं । फिर देखा, ‘मैं एक अलग हूँ, ‘तुम’ एक अलग फिर कूदा और मछली बन गया । देखा कि सच्चिदानन्द-समुद्र में आनन्दपूर्वक विचर रहा हूँ ।
“ये सब बड़ी ही गुह्य कथाएँ हैं । तर्क-विचार करके क्या समझोगे ? वे जब दिखा देते हैं, तब सब प्राप्त होता है, किसी वस्तु का अभाव नहीं रहता ।”
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शुक्रवार, ४ जनवरी १८८४ ई. । दिन के चार बजे के समय श्रीरामकृष्ण पंचवटी में बैठे हैं । मुख पर हँसी है और साथ हैं मणि, हरिपद आदि । हरिपद के साथ स्व. आनन्द चॅटर्जी के बारे में बातें हो रही हैं और घोषपाड़ा के साधन-भजन की बातें ।
धीरे-धीरे श्रीरामकृष्ण अपने कमरे में आकर बैठे हैं । मणि, हरिपद, राखाल आदि भक्तगण भी उनके साथ रहते हैं । मणि अधिक समय बेलतला में रहते हैं ।
(क्रमशः)

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