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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“अष्टमोल्लास” २२/२४)
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*पुत्रों ने भी कहा हम राज नहीं करेंगें*
*हम तो स्वामी राज न करैं,*
*भौ सिन्धु में कैसे परैं ।*
*दुख दरिया संसार जु कहिये,*
*ता में सुख कहां सो लहिये ॥२२॥*
स्वामी जी हम भी राज नहीं करेगे ऐसा राजपुत्रों ने कहा कारण ! अब राज करना तो जान बूझ कर भवसागर में पड़ना है । संसार को तो आप दु:ख समुद्र कहते हैं, तब कहिये उसमें सुख कहां से मिलेगा ॥२२॥
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*करै राइ हम बन में वासू,*
*पदमसिंघ सुत वचन प्रकासू ।*
*जब ते त्याग्यौ हम ग्रभवासू,*
*देखे नहीं सु भोग विलासू ॥२३॥*
अत: हे राजन अब हम वन में ही निवास करेंगे । फिर पदमसिंघ के पुत्रों ने कहा - जब से हमने गर्भवास त्यागा है तब से ही भोग विलास नहीं देखे हैं ॥२३॥
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*सबही बन में चले गये*
*कृपा अब ही तुम्हारी भई,*
*दुर्मति हमारी सब टरि गई ।*
*बोले सब ही बन को धावें,*
*माया मोह चित्त नहीं लावै ॥२४॥*
फिर अब तो आपकी कृपा हो गई, उससे हमारी दुर्मति नष्ट ही हो गई । अत: हम सब भी वन को ही जायेंगे, माया मोह में मन नहीं लगायेंगे ॥२४॥
(क्रमशः)

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