रविवार, 21 फ़रवरी 2021

उपजणि का अंग २८ - १२/१५

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी ~ उपजणि का अंग २८ - १२/१५)*
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*॥ निन्दा ॥*
*जब हम ऊजड़ चालते, तब कहते मारग मांहि ।*
*दादू पहुंचे पंथ चल, कहैं यहु मारग नांहि ॥१२॥*
जब हम संसार रूपी जंगल में विषय रूपी वृक्ष खण्डों में घूमते थे तब संसारी लोग बडे प्रसन्न होकर कहते थे कि यह मार्ग बहुत अच्छा है । लेकिन जब से संसार जंगल में विषयों को त्याग कर भक्तिमार्ग को अपनाया है तब लोग कहते हैं कि यह तो कोई मार्ग ही नहीं हैं । कहां जा रहे हो । ऐसी निन्दा से मैं मोहित नहीं होऊंगा ।
लिखा है कि- हे मात ! पृथ्वी ! हे पिता ! पवन मित्र तेज बन्धु जल और हे भाई आकाश यह आप लोगों को मेरा अन्तिम प्रणाम है । क्योंकि आपके संग से प्राप्त पुण्य के द्वार प्रकटित निर्मल जल ज्ञान से संपूर्ण मोह जाल को नाश करके मैं परब्रह्म में लीन हो रहा हूं ।
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*॥ उपजणि ॥
*पहले हम सब कुछ किया, भरम करम संसार ।*
*दादू अनुभव उपजी, राते सिरजनहार ॥१३॥*
पहले मैंने भी अज्ञानियों की तरह अज्ञान के कारण भ्रम में पडे रहने से सांसारिक कर्म किये थे । लेकिन अब मुझे ज्ञान हो गया है तो सब को त्याग कर भगवान् के चिन्तन में ही लगा रहता हूं ।
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*सोई अनुभव सोई ऊपजी, सोई शब्द तत सार ।*
*सुनतां ही साहिब मिले, मन के जाहिं विकार ॥१४॥*
वही ज्ञान वही अनुभव और वही ब्रह्म तत्त्व बोधक शब्द होते हैं जिनके सुनने मात्र से मन के विकार नष्ट हो जाय ।
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*॥ परिचय जिज्ञासा उपदेश ॥*
*पारब्रह्म कह्या प्राण सौं, प्राण कह्या घट सोइ ।*
*दादू घट सब सौं कह्या, विष अमृत गुण दोइ ॥१५॥*
इस पद्य में प्रवृत्ति-निवृत्ति ज्ञानविषयक परंपरा बतला रहे हैं संक्षेप से । पहले परमात्मा ने यह दोनों ज्ञान हिरण्य गर्भ को बतलाया । हिरण्यगर्भ से यह ज्ञान ऋषियों के पास आया और ऋषियों ने फिर ज्ञान संसार में फैलाया ।
(क्रमशः)

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