रविवार, 21 फ़रवरी 2021

*सदसद्-विचार*

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*सगुण निर्गुण ह्वै रहै, जैसा है तैसा लीन ।*
*हरि सुमिरण ल्यौ लाइए, का जाणों का कीन ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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(३)
*सदसद्-विचार*
कुछ भक्त शिवपुर से आये हैं । वे लोग इतनी दूर से कष्ट उठाकर आये हैं, श्रीरामकृष्ण और अधिक चुप न रह सके । चुनी हुई बातें उनसे कह रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण – (शिवपुर के भक्तों से) – ईश्वर ही सत्य है, और सब अनित्य बाबू और बगीचा । ईश्वर और उनका ऐश्वर्य । लोग बगीचा ही देख लेते हैं, पर बाबू को कितने लोग देखना चाहते हैं ?
भक्त – अच्छा, फिर उपाय क्या है ?
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श्रीरामकृष्ण – सदसद्-विचार । वे ही सत्य हैं और सब अनित्य, इसका सर्वदा विचार करना, और व्याकुल होकर उन्हें पुकारना ।
भक्त – जी, समय कहा है ?
श्रीरामकृष्ण – जिन्हें समय है वे ध्यान-भजन करेंगे ।
“जो लोग बिलकुल कुछ न कर सकें वे दोनों समय भक्तिपूर्वक दो बार प्रणाम करें । वे भी तो अन्तर्यामी हैं, वे समझते हैं कि ये क्या करते हैं । तुम्हें कितने ही काम हैं । तुम्हें पुकारने का समय नहीं, तो उन्हें आममुख्तारी दे दो; परन्तु अगर उन्हें पा न सके, उनके दर्शन न कर सके, तो कुछ न हुआ ।”
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एक भक्त – आपको देखना और ईश्वर को देखना बराबर है ।
श्रीरामकृष्ण – यह बात अब फिर न कहो । गंगा की ही तरंग है, परन्तु तरंगों की गंगा नहीं । मैं इतना बड़ा आदमी हूँ, मैं अमुक हूँ – यह सब अहंकार बिना गये उन्हें कोई पा नहीं सकता । ‘मैं’ रूपी मेंड़ को भक्ति के आँसुओं से भिगोकर जमीन बना दो ।
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*संसार क्यों है ? भोग के अन्त में व्याकुलता तथा ईश्वरलाभ*
भक्त – संसार में क्यों उन्होंने ने रखा है ?
श्रीरामकृष्ण – सृष्टि के लिए रखा है, उनकी इच्छा । उनकी माया । कामिनी-कांचन देकर उन्होंने रखा है ।
भक्त – क्यों भुलाकर रखा है ? क्या उनकी यह इच्छा है ?
श्रीरामकृष्ण – वे अगर ईश्वरीय आनन्द एक बार दे दें तो फिर कोई संसार में ही न रहे – फिर सृष्टि ही न चले !
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“चावल की आढ़त में बड़ी-बड़ी गोदामों में चावल रहता है । चावल का पता कहीं चूहों को न लग जाय इस डर से दूकानदार गोदाम के सामने एक ओर गुड़ मिलाकर लावे(खिलें) रख देता है । मीठा लगने से चूहे रात भर वही खाते रहते हैं । चावल की खोज के लिए उतावले होते ही नहीं ।
“परन्तु देखो, सेर भर चावल के १४ सेर लावे होते हैं । कामिनी-कांचन के आनन्द से ईश्वर आनन्द कितना अधिक है ! उनके स्वरूप का चिन्तन करने से रम्भा और तिलोत्तमा का रूप चिता की भस्म के समान जान पड़ता है ।”
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भक्त – उन्हें पाने के लिए व्याकुलता क्यों नहीं होती ?
श्रीरामकृष्ण – भोग का अन्त हुए बिना व्याकुलता नहीं होती । कामिनी-कांचन की भोग-वासना जितनी है, उतनी तृप्ति हुए बिना जगन्माता की याद नहीं आती । बच्चा जब खेल में लगा रहता है तब वह माँ को नहीं चाहता । खेल समाप्त हो जाने पर वह कहता है – अम्मा के पास जाऊँगा । हृदय का लड़का कबूतर लेकर खेल रहा था, ‘आ-ती-ती’ करके कबूतर को बुला रहा था । जब उसे खेल से तृप्ति हो गयी तब उसने रोना शुरू का दिया । तब एक बिना पहचान के आदमी ने आकर कहा – ‘आ, तुझे तेरी माँ के पास ले चलूँ ।’ वह उसी के कन्धे पर चढ़कर चला गया, अनायास ही ।
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“जो नित्य-सिद्ध है, उन्हें संसार में नहीं घुसना पड़ता जन्म से ही उनकी भोग-वासना मिट गयी है ।
पाँच बजे का समय है । मधु डाक्टर आये हैं । श्रीरामकृष्ण के हाथ में पटरियाँ बाँधेंगे । श्रीरामकृष्ण बालक की तरह हँस रहे हैं और कहते हैं, ऐहिक और पारत्रिक के मधूसूदन ।
मधु – (सहास्य) – केवल नाम का बोझ ढो रहा हूँ ।
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श्रीरामकृष्ण – (सहास्य) – कोई नाम कम थोड़े ही है ? उनमें और उनके नाम में कोई भेद नहीं है । सत्यभामा जब तुला पर स्वर्ण, मणि और मुक्ताएँ रखकर श्रीकृष्ण को तौल रही थीं तब वजन पूरा न हुआ । जब रुक्मिणी ने तुलसी पर कृष्ण-नाम लिखकर एक ओर रख दिया तब वजन पूरा उतरा ।
अब डाक्टर पटरियाँ बाँधेंगे, जमीन पर बिस्तरा लगाया गया, श्रीरामकृष्ण हँसते हुए बिस्तरे पर आकर लेट गाने के ढंग से कह रहे हैं – “राधिका की यह दशम दशा है । वृन्दा कहती है, अभी न जाने क्या क्या होगा !”
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चारों ओर भक्तगण बैठे हैं । श्रीरामकृष्ण फिर गा रहे हैं – ‘सब सखि मिलि बैठल सरोवर-कूले ।’ श्रीरामकृष्ण भी हँस रहे हैं और भक्तगण भी हँस रहे हैं । बैंडेज बाँधना समाप्त हो जाने पर श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं –
“कलकत्ते के डाक्टरों पर मेरा उतना विश्वास नहीं होता । शम्भू को विकार की अवस्था थी, डाक्टर(सर्वाधिकारी) कहता था, यह कुछ नहीं; दवा की नशा है ! उसके बाद ही शम्भू की देह छूट गयी ।’
(क्रमशः)

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