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*बिच के सिर खाली करैं, पूरे सुख सन्तोष ।*
*दादू सुध बुध आत्मा, ताहि न दीजे दोष ॥*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---साधना
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एक ब्राह्मण विशेष आग्रह करके मुझे से कुछ सीखने के लिये मुझे अपने गांव ले गया । वहां के लोग उन्हे महान विद्वान मानते थे । वे जब मुझसे कुछ विषय समझने सीखने के लिये बैठते थे तब यदि कोई मनुष्य आता दिख पड़ता तो पुस्तक को तत्काल पट(वस्त्र) में दबा देते थे । उन्हें यह ध्यान आता कि ये महान विद्वावान होकर भी अब नया सीखते हैं ? इसी संकोचवश ये मुझे जिस कार्य के लिये ले गये थे वह साधना पूर्ण नहीं कर सके थे । इससे ज्ञात होता है कि मानी साधक से साधना होना संभव नहीं ।
मानी साधक से कभी, साधन संभव नहीं ।
आते लखकर अन्य को, पुस्तक पट के मांहि ॥१८९॥

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