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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“अष्टमोल्लास” १/३)
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*धराजूजैमल पदमसिंघ उवाच ब्रह्मज्ञान*
*श्री दादूजी की महिमा अस्तुति- छंद*
*आये दयालं, भये कृपालं,*
*करी संभालं दीनदयालं ।*
*कीये निहालं, सन्मुख भालं,*
*गए जंजालं, मिटे उरसालं ॥*
*गहे मुखि कालं, करी प्रतिपालं,*
*समझाई ढालं, आल जंजालं,*
*बकस्यो मालं, राम निरालं,*
*तोरे जालं, लीन्हे नालं,*
*ब्रह्म दिसि चालं, प्रापति लालं,*
*हृदय भालं, कीये विहालं ।*
*उमगी छालं, विरहे झालं ॥१॥*
धराजू जैमल और पदमसिंघ दयाल जी की स्तुति में उनके गुणगान कर रहे हैं । दादू दयाल जी आये हमारे पर कृपालु हुये, उन्होंने हमारी रक्षा संभाल की, दीनों पर दया करने वालो ने हमको निहाल कर दिया, उनके दर्शन से हमारें संसार के जंजाल छूट गये, हृदय की पीड़ा समाप्त हो गई । हम कलिकाल के मुख में जा रहे थे आपने हमारी रक्षा की, हमें ब्रह्मज्ञान समझाया संसार के आल जंजाल काट दिये, आपने ब्रह्म ज्ञान रूपी धन प्रदान किया, निराले राम का ज्ञान समझाया, सारे बन्धन तोड़ दिये हमे पास शरण में ले लिया । ब्रह्म की तरफ चलाया, नामस्मरण रूपी लाल प्रदान किया, हृदय में ब्रह्म ज्ञान दिया, हमें हरि विरह में बेहाल कर दिया, हमारे हृदय सागर में ब्रह्म प्राप्ति के विरह जल की तरंग उठी ॥१॥
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*कृपा करी दयालजी, कीन्हीं बेगि संभार*
*देह विसर्जन सब किये, तारे पैली पार ॥२॥*
दादू दयाल जी ने बड़ी कृपा की कि हमको शीघ्र ही संभाल लिया सब को देह मुक्त करके भवसागर पार उतार दिया ॥२॥
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*पैली पारं, सतगुरु सारं,*
*बारं बारं, करी संभारं,*
*लीन्हे लारं, अमृत डारं,*
*मुख मंझार, सो निज सारं ॥*
*ओम ओंकार रहत अकारं,*
*सो निरकारं, इष्ट उचारं ।*
*भागि हमारं, पर उपगारं,*
*संसै टारं, भया औतारं ॥*
*सो चिरकारं, होते ख्वारं,*
*जम के द्वारं कर्म सु जारं,*
*किंक्रं मारं, चलते हारं,*
*दिये सब टारं, लिय उबारं ।*
*श्रवण द्वारं, राम उचारं ॥३॥*
सतगुरु ने भवसागर से पार उतारा, सतगुरु ने सार रूप नाम समझाया बताया, बार बार इस जीव की संभाल की, अपने साथ साधना में लगा लिया, ब्रह्म ज्ञान का अमृत पान कराया, मुख को स्वच्छ किया अपने निज स्वरुप का ज्ञान कराया । निराकार ओंकार रूप ब्रह्म का ज्ञान दिया उस निराकार ईष्ट का उच्चारण करना । यह हमारा सौभाग्य है कि सतगुरु मिले, जो पर उपकारी हैं, संसार के सन्देहों को मिटाते हैं, ये अवतार रूप हैं, हमारे चिरकालीन कर्मों को जला कर यम के द्वार पर संकट से मुक्त किया । यमदूतों से हमारे पाप नष्ट कर बचाया । श्रवण के द्वारा राम नाम का उच्चारण करवाया ॥३॥
(क्रमशः)

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