गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

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*सतगुरु की समझै नहीं, अपणै उपजै नांहि ।*
*तो दादू क्या कीजिए, बुरी बिथा मन मांहि ॥*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---साधना
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एक राजा ने एक वन में चारों ओर तार लगा रखे थे । चारों दिशाओं में चार द्वार बना रखे थे । एक व्यक्ति उसमें मार्ग भूल गया और भूख से व्याकुल होकर एक वृक्ष के पत्ते खाने से अंधा हो गया । उसे उस वन के रक्षक ने वन का तार पकड़ा कर कहा - इसे पकड़े हुये चलते रहना, द्वार आ जायेगा । द्वार आने के समय उसने तार को छोड़ दिया और सिर को खुजाता हुआ चलता रहा, इससे द्वार पीछे रह गया । तार पकड़ना रूप साधन छोड़ने से द्वार से निकलना रूप फल प्राप्ति से विध्न हो गया । इससे ज्ञात होता है कि साधन निरंतर करना चाहिये ।
साधन छोड़े मध्य में, विध्न लाभ में होय ।
तार पकड़ भी विपिन से, निकल सका नहिं कोय ॥१७८॥

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