सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

= १२२ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*बैकुंठ मुक्ति स्वर्ग क्या कीजे, सकल भुवन नहिं भावे ।*
*भठी पयें सब मंडप छाजे, जे घर कंत न आवे ॥*
*लोक अनंत अभै क्या कीजे, मैं विरहीजन तेरा ।*
*दादू दरशन देखण दीजे, ये सुन साहिब मेरा ॥*
=======================
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---वैराग्य
###########################
मुदगल ऋषि कुरुक्षेत्र में रहते थे, उनकी शिलोञ्छ वृति थी । अतिथियों के देने के बाद १५ दिन में एक दिन भोजन करते थे । इनकी कीर्ति सुन करके परीक्षा के लिये दुर्वासा प्रत्येक १५ दिन वे आकर इनका अन्न खा जाते थे । इससे तीन मास मुदगल सपरिवार भूखे ही रहे । 
छठी बार मुदगल के पुण्य प्रताप से देवदूत ने आकर कहा - मुदगलजी आप स्वर्ग सुख भोग के लिये स्वर्ग पधारें । मुदगल ने देवदूत के द्वारा स्वर्ग सुख-दुख श्रवण करके स्वर्ग सुख को त्याग करके समपद(ब्रह्म पद) की ही इच्छा की । स्वर्ग में नहीं गए ।
मिलते ही स्वर्गादि सुख, तजे विरक्त सुजान ।
मुदगल ऋषि ने तज दिया, समपद मान महान ॥२०७॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें