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*राम जपै रुचि साधु को, साधु जपै रुचि राम ।*
*दादू दोनों एक टग, यहु आरम्भ यहु काम ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विचार का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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इन्दव-
*ध्यान धरयो जनको जगदीश्वर,*
*ताहि समै ऋषि नारद आयो ।*
*तारि छुटी तब हि लगे बूझन,*
*काहि भजो हरि को मन भायो ॥*
*नाथ कही जन हाथ बिकानो,*
*सु मोहमरद विशेष सुनायो ।*
*राघो कियो ऋषि नारद ने छल,*
*सिंहपाई साधु को पुत्र मरायो ॥९३॥*
एक दिन भगवान् विष्णु अपने भक्त का ध्यान कर रहे थे । उसी समय देवर्षि नारदजी वहां आ पहुँचे और मानस प्रणाम करके एक ओर बैठ गये ।
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जब ध्यान खुला तब प्रणामादि होने के पश्चात् नारदजी ने हरि से पूछा- आप किस का भजन करते हैं, कौन आपके मन को प्रिय लगता है ?
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भगवान् ने कहा- मैं भक्तों के हाथ बिका हुआ हूँ, इससे भक्तों का ही ध्यान करता हूं । उनमें भी मोहमर्द का विशेष करता हूं ।
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ऐसा सुनाया तब देवर्षि नारद भगवान् को प्रणाम करके वहां से चल पड़े और मोहमर्द की राजधानी में आकर एक छल किया । मोहमर्द का युवक पुत्र शिकार के लिये आया था. उसको माया के सिंह से मरवा दिया ।
(क्रमशः)

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