मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

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🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
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*हाड़ चाम का पिंजरा, बिच बोलणहारा ।*
*दादू तामें पैस कर, बहुत किया पसारा ॥*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---साधना
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सिंहल द्वीप के अनुराधपुर नगर से बाहर चैत्य पर्वत पर महातिश्य नाम का एक बौद्ध भिक्षु रहा करते थे । एक दिन वे भिक्षा करने नगर में जा रहे थे । मार्ग में एक युवती स्त्री मिली वह अपने पति से झगड़ा करके अपने पिता के घर जा रही थी । भिक्षु को देखकर उन्हे अपनी और आकर्षित करने के लिये हँसने लगी । उसके हँसने पर भिक्षु की दृष्टि उसके दांतो पर पड़ी । उसके मन में उसके सौन्दर्य का प्रभाव न पड़ करके यह भाव उठा कि हड्डियों का पिंजरा जा रहा है ।
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स्त्री आगे चली गई । कुछ दूर उसका पति मिला । उसने भिक्षु से पुछा - इस मार्ग में एक सजी हुई सुन्दरी युवती को आपने जाते देखा है ? भिक्षु - इधर से कोई पुरुष गया या स्त्री इस बात पर मेरा ध्यान नहीं गया, किन्तु इतना मुझे पता है कि इस मार्ग से अभी एक अस्थि-पंजर गया है । इससे सूचित होता है कि साधकजनों की दृष्टि में काम विकार नहीं आता ।
साधकजन की दृष्टि में, आत न काम विकार ।
अस्थिपञ्जरा नारि को, महातिष्य उच्चार ॥२१४॥

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