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*दादू सब ही मारग सांइयाँ, आगै एक मुकाम ।*
*सोई सन्मुख कर लिया, जाही सेती काम ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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(३)
*समन्वय और निष्ठा भक्ति । अपराध और ईश्वर-कोटि*
शाम हो गयी है । श्रीरामकृष्ण भक्त रामचन्द्र के घर आए हुए हैं । यहाँ से होकर दक्षिणेश्वर जाएँगे ।
रामचन्द्र के बैठकखाने को आलोकित करते हुए भक्तों के साथ श्रीरामकृष्ण बैठे हुए हैं । श्री महेन्द्र गोस्वामी से बातचीत कर रहे हैं । गोस्वामीजी उसी मोहल्ले में रहते हैं । श्रीरामकृष्ण इन्हें प्यार करते हैं । जब श्रीरामकृष्ण रामचन्द्र के यहाँ आते हैं तब गोस्वामीजी आकर इनसे मिल जाया करते हैं ।
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श्रीरामकृष्ण - वैष्णव, शाक्त सब के पहुँचने की जगह एक है; परन्तु मार्ग और और हैं । जो सच्चे वैष्णव हैं, वे शक्ति की निन्दा नहीं करते ।
गोस्वामी(सहास्य) – हर-पार्वती हमारे माँ बाप हैं ।
श्रीरामकृष्ण(सहास्य) - Thank You (थैंक यू) – माँ बाप हैं ।
गोस्वामी – इसके सिवाय किसी की निन्दा करने से, खास कर वैष्णवों की निन्दा से, अपराध होता है – वैष्णवापराध । सब अपराधों की क्षमा है, परन्तु वैष्णवापराध की क्षमा नहीं है ।
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श्रीरामकृष्ण – अपराध सब को नहीं होता । जो ईश्वरकोटि हैं, उनको अपराध नहीं होता । जैसे श्रीचैतन्यसदृश अवतारी पुरुषों को ।
“बच्चा अगर बाप का हाथ पकड़कर चलता हो, तो वह गड्ढे में गिर सकता है, परन्तु अगर बाप बच्चे का हाथ पकड़े हुए हो तो बच्चा कभी नहीं गिर सकता ।
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“सुनो, मैंने माँ से शुद्धा-भक्ति की प्रार्थना की थी । माँ से कहा था, ‘यह लो अपना धर्म, यह लो अपना अधर्म; मुझे शुद्धा-भक्ति दो । यह लो अपनी शुचि, यह लो अपनी अशुचि, मुझे शुद्धा-भक्ति दो । माँ, यह लो अपना पाप यह लो अपना पुण्य, मुझे शुद्धा-भक्ति दो ।”
गोस्वामी – जी हाँ ।
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श्रीरामकृष्ण – सब भक्तों को नमस्कार करना । परन्तु ‘निष्ठाभक्ति’ भी है । सब को प्रणाम तो करना, परन्तु हृदय का उमड़ता हुआ प्यार एक ही पर हो । इसी का नाम निष्ठा है ।
“राम-रूप के सिवाय और कोई रूप हनुमान को न भाता था । गोपियों की इतनी निष्ठा थी कि उन्होंने द्वारका में पगड़ीवाले श्रीकृष्ण को देखना ही न चाहा ।
“स्त्री अपने देवर-जेठ आदि को पैर धोने के लिए पानी और बैठने को आसन आदि देकर सेवा करती है; परन्तु पति की जैसी सेवा करती है, वैसी वह किसी दूसरे की नहीं करती । पति के साथ उसका सम्बन्ध कुछ दूसरा है ।”
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रामचन्द्र ने कुछ मिठाइयाँ देकर श्रीरामकृष्ण की पूजा की ।
अब वे दक्षिणेश्वर जानेवाले हैं । मणि से उन्होंने बनात लेकर शरीर ढक लिया और टोपी पहन ली । अब भक्तों के साथ वे गाड़ी पर चढ़ने लगे । रामचन्द्र आदि भक्त उन्हें चढ़ा रहा हैं, मणि भी गाड़ी पर बैठे, वे भी दक्षिणेश्वर लौट जाएँगे ।
(क्रमशः)

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