शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

*निशिचर भक्त*

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*सहकामी सेवा करैं, मागैं मुग्ध गँवार ।*
*दादू ऐसे बहुत हैं, फल के भूँचनहार ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ निष्काम पतिव्रता का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*निशिचर भक्त*
*छप्पय-*
*राघव रिझये रामजी,*
*भलो गह्यो मत मुक्ति को ॥*
*बाणासुर प्रहलाद,*
*कहूँ बलि मय पुनि त्वाष्टर ।*
*असुर भाव को त्याग,*
*भज्यो सो निशि दिन नरहर ॥*
*राम उपासक तीन,*
*और रावण सम ईहै ।*
*लंका ले के राम,*
*विभीषण को जु दिई है ॥*
*कियो मंदोदरि त्रिजटी,*
*मान महात्म्य भक्ति को ।*
*राघव रिझये रामजी,*
*भलो गह्यो मत मुक्ति को ॥८५॥*
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*१.बाणासुर* असुरराज बलि का विख्यात पुत्र था । भगवान् शिव का महाकाल नामक पार्षद यही है । इसकी राजधानी का नाम शोणितपुर था । इसने शिव की आराधना करके वर प्राप्त किया था । उसी वर के प्रभाव से यह देवताओं को सदा भयभीत करता रहता था । इसकी उन्नति के लिये शुक्राचार्य सतत यत्न करते रहते थे । इसने अनिरुद्ध को कैद कर लिया था । श्री कृष्ण भगवान् आदि अनिरुद्ध को छुड़ाने गये । तब बाणासुर की ओर से शिव, कार्तिकेय आदि ने भी युद्ध किया था । श्री कृष्ण ने शिव को परास्त करके बाणासुर की भुजायें काट डाली थी । बाणासुर क्रौंच पर्वत का आश्रय लेकर देवताओं को कष्ट देता रहता था । इसीसे स्कन्द ने क्रौंचपर्वत को विदीर्ण किया था ।
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*२.प्रहलाद* हिरण्यकशिपु के प्रथम पुत्र थे । इनकी माता का नाम कयाधु था । इनके तीन पुत्र थे-विरोचन, कुम्भ और निकुम्भ । विरोचन और सुधन्वा के विवाद का इनने निष्पक्ष निर्णय दिया था । ब्राह्मण भेषधारी इन्द्र को इनने शील का दान दिया था । ये पृथ्वी के प्रधान शासकों में से एक हैं ।
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*३.बलि* प्रहलादजी के पौत्र एवं विरोचन के पुत्र थे । इनके पुत्र का नाम बाण था । इनने इन्द्र लोक पर विजय प्राप्त की थी । इनने वामन भगवान् को तीन पद पृथ्वी देने का संकल्प किया था, फिर वामन ने इनको बाँध लिया था तथा पाताल लोक में रहने की आज्ञा दी थी । इनने इन्द्र के आक्षेप युक्त वचनों का कठोर उत्तर दिया था । काल की प्रबलता बताते हुये इनने इन्द्र को फटकारा था । जो दृष्टि रखते हुये तथा श्रद्धा रहित होकर दान दिया जाता है, उस सारे दान दिया जाता है, उस सारे दान को ब्रह्माजी ने असुर राज बलि का भाग निश्चित किया है ।
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*४.मय* नमुचि का भाई और दानवों का विश्वकर्मा है । दक्षिण समुद्र के निकट सह्य, मलय और दुर्दुर नामक पर्वतों के आस पास एक विशाल गुफा के भीतर बने हुए दिव्य भवन में त्रेतायुग में मयासुर निवास करता था । वहीँ स्वयंप्रभा तपस्विनी तपस्या करती थी । इस गुफा में हनुमान् जी आदि वानर भी गये थे । मयदानव ने कुछ काल तक खाण्डव वन में निवास किया था । अर्जुन ने इसे जलने से बचाया था । इसने युधिष्ठिर के लिये सभा भवन का निर्माण किया था । तथा पाण्डवों को दैत्यों के अद्भुत चरित्र सुनाये थे । मय ने भीमसेन को गदा और अर्जुन को शंख लाकर दिया था तथा एक मायामय ध्वज का निर्माण करके अर्जुन को दिया था । इसी ने त्रिपुर संज्ञक तीन पुरों का निर्माण किया था ।
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*५.त्वाष्ट्र(वृत्रासुर)* त्वष्टा की तपस्या से संतुष्ट हुए शिवजी की कृपा से वृत्रासुर पुत्र हुआ था । त्वष्टा की अभिचाराग्नि से भी इसकी उत्पत्ति कही गई है । वह कल्प भेद से संभव है । इस महान् असुर के मस्तक पर प्रहार करने से वज्र के दश बड़े और सौ छोटे टुकड़े हो गये थे । सनत्कुमार जी के उपदेश का समर्थन करते हुए इसने परम धाम प्राप्त किया था । असुर भाव को त्याग कर रात्रि दिन नरहरी प्रभु का भजन किया है, ऐसे राम उपासक निशिचर भक्त तो तीन(प्रहलाद, बलि और विभीषण) ही हुए हैं । और तो इस ब्रह्माण्ड में रावण के समान ही हुए हैं । विभीषण की भक्ति से प्रसन्न होने के कारण ही राम ने लंका जीत लेने पर विभीषण को प्रदान कर दी थी । रावण के भाई विभीषण की कथा प्रसिद्ध ही है तथा पद्य टीका के २९-३१ पद्यों में पहले आ गई है वहां देखो ।
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निशिचर नारी भक्तों में रावण की पत्नी मंदोदरी और अशोक वाटिका में सीता जी के रक्षा करने वाली त्रिजटा ने भी भक्ति के माहात्म्य को माना है अर्थात् भक्ति करी है । उक्त निशिचर भक्तों ने मुक्ति प्रदाता भक्ति रूप सुन्दर सिद्धांत ग्रहण करके परमात्मा को प्रसन्न किया है ।
(क्रमशः)

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