रविवार, 7 फ़रवरी 2021

(“अष्टमोल्लास” १६/१८)

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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“अष्टमोल्लास” १६/१८)
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*गये बीत एकादस वरसू,*
*उपज्यो मन में अति ही हरषू ।*
*रहौ, जाहु, दोऊ नहीं भाखूं,*
*उभै बात सु निर्पख दाषूं ॥१६॥*
वे एकादश वर्ष भी बीत गये हैं और आपके दर्शन और उपदेश से हमको बहुत आनंद प्राप्त हुआ है । तब दादूजी महाराज ने कहा रहो या जाओ में दोनों ही बात नहीं करता हूं दोनों बातों के लिये ही निष्पक्ष बात कहता हूं ।
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*श्री दादूजी राजाओं को ज्ञान समझाना*
*जनक विदेही प्रगट जो भू मैं,*
*राज करत ही मिल्यो प्रभु में ।*
*भरथरी अरू गोपी चन्दा,*
*गये त्याग, मिलि परमानन्दा ॥१७॥*
देखो जनक विदेही राज करते हुये ब्रह्म में मिले थे और भरथरी व गोपीचन्द राज काज त्याग कर ब्रह्म को प्राप्त हुये थे ॥१७॥
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*जड भरथ, भूप, बलक सुलतानी,*
*कीयौ त्याग भक्ति तब जानी ।*
*बरणों और नृप जू केता,*
*त्यागो जगत ब्रह्म सूं हेता ॥१८॥*
ॠषभ के पुत्र राजा भरत, बलक बुखारे के सुलतान इन्होंने राज्य त्याग कर भक्ति करने की युक्ति जानी थी और उसके द्वारा प्रभु को प्राप्त किया था । और भी बहुत से राजाओं ने परब्रह्म पर आत्मा से स्नेह करने के लिये राज्यादि जगत का त्याग किया था ॥१८॥
(क्रमशः)

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