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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी ~ पारिख का अंग २७ - १/४)*
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*मंगलाचरण*
*दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरुदेवतः ।*
*वन्दनं सर्व साधवा, प्रणामं पारंगतः ॥१॥*
*साधुत्व परीक्षा*
*दादू मन चित आतम देखिये, लागा है किस ठौर ?*
*जहँ लागा तैसा जाणिये, का देखै दादू और ॥२॥*
बुद्धि से क्या विचारता है, चित्त में किस का चिन्तन है, मन से किस का मनन कर रहा है । यदि ये सब ईश्वर विषयक चिन्तन मनन विचार है तो उस को साधु जानना । यदि संसार के विषय में चिन्तन मनन मन बुद्धि से हो रहा है तो वह साधु नहीं किन्तु सांसारिक पुरुष ही है । क्योंकि केवल बाह्य वेश से साधु असाधु की परीक्षा नहीं हो सकती है । किन्तु मानसिक भावों से ही दोनों का जाना जाता है ।
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*दादू साधु परखिये, अन्तर आतम देख ।*
*मन मांहि माया रहै, कै आपै आप अलेख ॥३॥*
साधु की परीक्षा बाह्य वेशभूषादिकों को देखकर नहीं करनी चाहिये किन्तु उस के मानसिक भावों से होती है । यदि वह प्रतिक्षण ब्रह्म विचार में मग्न है तो वह साधु है । अन्यथा सांसारिक पुरुष है ।
पद्मपुराण में मनुष्य रूप में जो देवता है उनकी परीक्षा बतलाई है, जैसे- जो मानव द्विज देवता अतिथि गुरु साधु तपस्वियों के पूजन में संलग्न है । नित्य तपस्या परायण धर्म एवं नीति में स्थित है । क्षमाशील जितक्रोध सत्यवादी जितेन्द्रिय लोभ रहित प्रिय बोलने वाला शान्त धर्मशास्त्रप्रेमी दयालु लोकप्रिय मीठा बोलने वाला, वाणी पर अधिकार रखने वाला सब कामों में चतुर गुणवान् महाबली साक्षर-विद्वान् आत्मविद्या आदि कार्यों में संलग्न है । गाय के घी दूध दही आदि में तथा निरामिष भोजन में रूचि रखने वाला अतिथि को दान देने वाला पार्वण आदि कार्यों में रूचि रखने वाला, समय पर दान स्नान शुभ कर्म ब्रत यज्ञ देव पूजन तथा स्वाध्याय आदि कर्मों में ही समय को व्यतीत करने वाला तथा कोई भी दिन व्यर्थ नहीं जाने देता वही मनुष्य देवता है ।
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*दादू मन की देख कर, पीछे धरिये नांव ।*
*अन्तरगति की जे लखैं, तिनकी मैं बलि जांव ॥४॥*
शुभ अशुभ भावनाओं से अन्तर् मन की परीक्षा के बाद ही साधु असाधु का निर्णय होता है, न कि नाम मात्र से ।
जैसे लिखा है कि- साधु पुरुष किसी के दोषों को मुख से नहीं कहता और अपने हृदय में भी धारण नहीं करता किन्तु ऐसे शंकर विष को पीकर जरा गये वैसे ही साधु दूसरे के दोषों को जरा जाता है ।
(क्रमशः)

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