रविवार, 21 फ़रवरी 2021

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*दादू समर्थ सब विधि सांइयाँ, ताकी मैं बलि जाऊँ ।*
*अंतर एक जु सो बसै, औरां चित्त न लाऊँ ॥*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---ईश्वर
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पंढरपुर से ५० कोस दूर औढिया नागनाथ अति प्रधान द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक शिव क्षेत्र है । विसोवा सर्राफ वहां ही के रहने वाले यजुर्वेदी ब्राह्मण थे । अकाल से पीड़ितों को अपनी सब संपति खिला दी । फिर कासे गांव से एक पठान से कई हजार का कर्ज लिया । वह भी अकाल पीङितों की सेवा में खर्च हो गया । लोगों के बहकाने से पठान ने बहुत शीध्रता की । सात दिन में देने का वायदा किया किन्तु रुपये नहीं मिले ।
सातवें दिन भगवान बिसोवा के मुनीम का भेष बनाकर पठान को रुपये दे आये थे, इसके बाद बिसोवा ने घर छोड़कर पंढरपुर में निवास किया और संत ज्ञानेश्वर के शिष्य हो गये । प्रसिद्ध भक्त नामदेवजी बिसोवा के ही शिष्य थे, इससे ज्ञात होता है कि भगवान भक्त के कष्ट को शीघ्र ही हर लेते हैं ।
भक्त-कष्ट को ईश ही, हरते शीघ्र निदान ।
कर्ज बिसोवा का सभी, चुका गये भगवान ॥९३॥

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