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*आत्म चेतन कीजिए, प्रेम रस पीवै ।*
*दादू भूलै देह गुण, ऐसैं जन जीवै ॥*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---ईश्वर
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भगवान ही ऋषभदेव के रूप में प्रकट होकर के साधक-संतों को अपनी चर्या द्वारा सप्तम भूमिका का उपदेश करते हैं । उन्हें अपने शरीर का भी ज्ञान नहीं रहता था । शरीर को बचाने के लिये वे दावाग्नि से भी दूर नहीं रह सकते थे । यह प्रसिद्ध है ।
उच्च अवस्था संत की, सिखलाते भगवान ।
ऋषभदेव को नहिं रहा, निज तन का भी भान ॥४९॥
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