शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

(“अष्टमोल्लास” २८/३०)

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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“अष्टमोल्लास” २८/३०)
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*चंद कमोदनी खरी सु प्रीति,*
*करो राज सु माया जीती ।*
*चलत बटाऊ बन मैं रहें,*
*चल्यो निसा गई मोह न करे ॥२८॥*
कमोदिनी की भी चन्द्र से सच्ची प्रीति होती है, वैसे ही सच्चा प्रेम प्रभु से रखते हुये माया को जीत कर राज करो । चलता हुआ पथिक वन में किसी वृक्ष के नीचे निवास करता है किन्तु रात्रि व्यतीत होनेपर चल देता है उसमे मोह नहीं करता है ॥२८॥
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*महा वैराज्ञ*
*संपति, विपति, नहीं मै, मेरा,*
*तन, मन, धन सब हरि जी तेरा ।*
*हरिष शोक, कछू नहिं करई,*
*राग, दोष सुख दुख न परई ॥२९॥*
वैसे ही, संपति, विपति, मैं, मेरापन, तन, मन, धन सब हरि के ही हैं, ऐसा समझ कर हर्ष, शोक, राग, द्वेष, सुख, दु:ख के प्रपंच में नहीं पड़ता ॥२९॥
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*तन धन पदार्थ मोह न बांधे,*
*अखंडित सुरति ब्रह्म सूं साधै ।*
*नहिं को बैरी, नहीं को मीता,*
*जांनिये पर आपन सरीखा ॥३०॥*
तन धन आदि पदार्थो के मोह में नहीं बंधता, निरंतर वृति ब्रह्म में ही लगाता है । बैरी और मित्र भावना उसकी नष्ट हो जाती है । सबको अपने समान ही जानता है ॥३०॥
(क्रमशः)

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